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गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

व्यंग्य---ज्यों-ज्यों बूड़े श्याम रंग

ज्यों-ज्यों बूड़े श्याम रंग

गर्मियों की इतवार की अलसाई सुबह का समय था और चढ़ती ध्ूप, मक्खियों की भिन्न-भिन्न तथा चिडि़यों की चांय चांय मेरे जैसे अलसाए लोंगों को वैसे ही बेचैन कर रही थी जैसे बढ़ती हुई मुद्रास्पफीति की दर से आजकल भारत सरकार बेचैन है । सामने चुनाव की गर्मी-सा लंबा दिन था और उस दिन में कहीं अंधेरा भी दिखाई दे रहा था । ऐसे अंधेरे में किसी गलतफहमी-सा धर्मिक प्रवचन, बहुत सकून देता है ।
ऐसी ही अलसाई सुबह मेरी पत्नी धर्मिक चैनल देख रही थी और जैसे हाई कमान की बात को न चाहते हुए भी देखना-सुनना पड़ता है वैसे ही मुझे देखना - सुनना पड़ रहा था। प्रवचनकत्र्ता बाबाजी उंचे से आसन पर बैठे अपने सामने, नीचे, जमीन पर बैठे भक्तों को समझा रहे थे कि इस संसार में सभी जीव बराबर हैं । जैसे मेरी सरकार लोगों की धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखती है, उसमें हस्तक्षेप नहीं करती है वैसे ही मैं भी अपनी पत्नी की धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखता हूं । पर इधर मैं देख रहा हूं कि पत्नी मेरी भावनाओं का कम और बाबाजी की भावनाओं की अधिक कद्र कर रही है । इसी कद्र के चक्कर में बाबाजी का आसन उंचा होता जा रहा है और हमारे जैसे भक्तों का नीचे । हमारी बूंद-बूंद श्रद्धा से उनका सागर भर रहा है । अपने हर प्रवचन में वो दान की महिमा समझाते हैं एवं भगत भक्तिभाव से समझते हैं और भगतो की इसी समझ का परिणाम है कि आश्रम फल-फूल रहा है और अनेक फूल-सी बालाएं उसकी शोभा बढ़ा रही हैं। ये दीगर बात है कि बाबाजी अपने आश्रम द्वारा तैयार किए गए आयुर्र्वैदिक उत्पादों को दान में नहीं देते हैं, उन बहुमूल्य वस्तुओं का मूल्य लेते हैं । जैसे-जैसे भगतों की संख्या बढ़ रही है, दान-कोष बढ़ रहा है और बहुमूल्य वस्तुओं के दाम बहुमूल्य हो रहे हैं । बाबाजी को प्रवचनों से फुरसत नहीं मिल रही है । भगतजनों ने थैलियों के मुंह खोल दिए हैं । एक-एक सतसंग की लाखों रुपयो में बोली लग रही है । ं
बाबाजी बता रहे हैं-- इस श्याम के रंग को कोई नहीं समझ सकता है । आप जैसे - जैसे इसके रंग में डूबते हैं वैसे वैसे उजले होते जाते हैं ।’ वे सोदाहरण समझा रहे थे कि उनके दरबार में अनेक श्यामवर्णी आए और उजले हो गए । आजकल बाबाजी की पहुंच बढ़ गई है और वे श्याम रंग में डूबे लोगों को उजला करने का परमार्थी -व्यवसाय कर हरे हैं । वो श्याम रंग में डूबे लोगों को उकसा रहे थे कि वे उनकी शरण में आएं और समाज में उजले होने का सम्मान प्राप्त करें । बाबाजी श्याम रंग में डूबे हुए भगतों को निर्भय कर रहे थे कि बाबाजी के होते वे निडर रहें और दान-दक्षिणा में अपनी श्रद्धा बनाए रखें । जितना वो दान-दक्षिणा में श्रद्धा रखेंगें उतने ही निर्भय हो सकेंगें। बिना हनुमान चालीसा का पाठ किए, भूत पिशाच उनके निकट नहीं आवेंगें ।वैसे जब आप ही उजले भूत- पिशाच हो जाएं तो कौन आपके सामने आने का साहस करेगा।
ऐसी अलसाई सुबह और बाबाजी के प्रवचनों के बीच उन्होनंे मेरी घंटी बजा दी । मैंनें दरवाजा खोला तो सामने उनको पाकर भयभीत मन मौन-भजन करने लगा -- भूत पिशाच निकट नहीं आवें , महावीर जब नाम सुनावें ।’ न न उस दिन न तो मंगलवार था, न ही मेरे सामने कोई रामभक्त या हनुमान भक्त खड़ा था और ना ही मैं पत्नी को दिखाने के लिए धार्मिक बना हुआ था। हमारे जनसेवक तो चुनाव के समय जनता के सामने धार्मिक हो जाते हैं मैं तो मात्र पत्नी के सामने होता हूं । मेरे सामने पुलिस-विभाग के ‘कुशल’ कर्मचारी और मेरे परम् ‘मित्र’ खड़े थे । मन ने मुझे चेताते हुए कहा, हे प्यारे सत्यवान, सावित्री को समाचार दे दे कि वह अपने सभी पतिव्रत गुणों को लाॅकर से निकाल ले क्योंकि उसके सत्यवान पर संकट की आशंका है । संतो ने कहा भी है कि पुलिसवालों की न तो दु’मनी अच्छी और न ही दोस्ती अच्छी, इनसे दूरी ही अच्छी ।
उनके हाथ में पकड़ा मिठाई का डिब्बा लगातार चेतावनी दे रहा था कि प्यारे मुझे खा मत जाना वरना एक के चार चुकाने पड़ेंगें । उनके चेहरे पर खिली हुई प्रसन्नता ऐसी थी जैसी किसी वकील या पुलिसवाले को एक अमीर द्वारा किए गए कत्ल का केस मिलने पर होती है । वे वर्दी के बिना ऐसे लग रहे थे जैसे चुनाव के समय वोट-याचना करता नेता, सीता का अपहरण करता हुआ रावण अथवा मुंह में राम और बगल में छुरी रखने वाला धार्मिक ।
उन्हें सामने देख पत्नी ने अपना धार्मिक कर्म स्विच आॅफ किया और भाई साहब के लिए चाय बनाने अंदर चली गई ।
मुझे देखते ही वो गले मिले और उनकी इस आत्मीयता से घबराकर मैंनें अपने पर्स को कसकर पकड़ लिया । मैं दूध का जला था और जानता था कि उनकी आत्मीयता की कीमत होती है जिसे वो किसी न किसी रूप में वसूल ही लेते हैं । वो सीधी,टेढ़ी, आड़ी-तिरछी सब प्रकार की अंगुलियों से घी निकालने में माहिर हैं । गले मिलने के बाद और उस मिलने से कुछ भी न मिलने के कारण मेरे इस मित्र ने बहुत जल्दी गले मिलो कार्यक्रम सम्पन्न कर लिया और शीघ्र ही मुद्दे पर आते हुए बोले-- प्रेम भाई आज बहुत अच्छा दिन है, आज मेरा तबादला हो गया है, लो मिठाई खाओ । मैंनें लोगों को तबादले से परेशान होते ही देखा है, पर मेरा मित्र तो प्रसन्न हो रहा था, जरूर दाल काली है ।-- बधाई हो, कहां हो गया तबादला ?’’-- वहीं जहां जवानी में मैं जाकर मजे करता था और तूं शर्म के मारे मुंह छिपाता था। वहीं जहां तेरे मन में तो लड्डू फूटते थे पर नैतिकता का मारा उनको चखता नहीं था। तूं डरता था कि जवानी में तेरे कदम फिसल गए तो इन चक्करों में पढ़-लिख नहीं पाएगा और अच्छी नौकरी नहीं मिलेगी । ’ इसके बाद उसने आंख मारते हुए कहा,‘ औरतों की मंडी में । अब तो दोनों हाथों में लड्डू होंगें ।
’’-- पर अभी तो आप बड़े ही पाॅश इलाके में थे, दक्षिण दिल्ली के इज्जतदार इलाके में ।’
-- इज्जतदार घंटु...’ कहकर वो थोड़ी देर रुका और बोला,‘ पता नहीं क्यों तेरी सोहबत में आते ही दिमाग के घोड़े दौड़ने लगते हैं... सच कह रहा तूं इलाका साला इज्जतदार ही है, बड़ी इज्जत से जुर्म होता है, बड़ी इज्जत से रिश्वत मिलती है,इज्जतदार घर की इज्जतदार औरतें जिस इज्जत के साथ इज्जत काजनाजा निकालती हैं... पर अप्पन को इतनी इज्जत की आदत नहीं है। साला डर ही लगा रहता है कि जिस साले से माल ले रहे हैं कहीं उस इज्जतदार की पहुंच उपर तक न हो और अपना स्टिंग आॅपरेशन ही न हो जाए । इज्जतदार इलाके में रिस्क ज्यादा है ।
’’-- पर औरतों की मंडी तो बहुत बदनाम जगह है... वहां क्या मिलेगा, नीचे गिरे लोग, बदनामी ही न...-- प्यारे जहां जितने नीचे - गिरे लोग होंगें वहां उतना ही उपर का माल बनेगा न । समुद्र में भी जितने नीचे जाओ उतने ही रत्न मिलते है नं... काले कोयले की खानों में ही तो हीरा मिलता है... अबे शरीफों के मोहल्ले में क्या मिलेगा, मैडल, साले जिसे बाजार में भी नहीं बेच सकते हैं, बेचने जाओ तो लोग टोकते हैं, क्यों, अपना सम्मान बेच रहे हो ? प्यारे बड़ी मुश्किल से ले- देकर ये ट्रांसफर करवाया है । जानता है इस थाने में ट्रांसफर का क्या रेट चल रहा है...
’’-- रहने दो मित्र क्यों अपना ट्रेड सीक्रट बताते हो । -- पर तुम तो ट्रेड शुरु कर दो । तुम्हारे इलाके का एस। एच। ओ। अपना दोस्त है । मजे से पेपर लीक करो , तुम पर आंच नहीं आएगी । खाओं और खाने दो के सिद्धांत पर चलो जैसे तुम्हारा मित्र चोपड़ा चल रहा है । जानते हो कितनी इज्जत है उसकी । आई. ए. एस., बड़े-बड़े बिजनेसमैन,सांसद, एम एल ए -- कौन-कौन नहीं उसके दरवाजे पर आता है। सबको अपने बच्चों के बढि़या नम्बर चाहिए होते हैं और बच्चे तो देश का भविष्य होते हैं तथा ऐसे में भविष्य कम नम्बर वाले बच्चों का हो गया तो देश का क्या होगा । कितनी बड़ी देशसेवा कर रहा है चोपड़ा और इसके बदले में उसे पैसे का पैसा मिल रहा है और इज्जत की इज्जत । तुम्हें क्या मिल रहा है ?’’
-- मुझे ... ’’
-- लटके रहो नैतिकता की इन सूईयों को पकड़ कर । पालते रहो अपने उजले होने का भ्रम । प्यारे आजकल उजला वही है जो श्याम के रंग में डूबा है । आजकल उजला होना महत्वपूर्ण नहीं है उजला दिखना महत्वपूर्ण है । ’ यह कहकर मुझे चिकना घड़ा मान वो देशसेवा के उच्च विचार धरण किए आगे बढ़ गया ।
शायद सच ही कहा उसने-- आजकल उजला वही हो जो श्याम के रंग में डूबा है और जितना डूब रहा उतना ही उजला हो रहा है । उजला होने से अधिक उजला दिखना महत्वपूर्ण है ।
तथास्तु ।
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5 टिप्‍पणियां:

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

प्यारे आजकल उजला वही है जो श्याम के रंग में डूबा है । आजकल उजला होना महत्वपूर्ण नहीं है उजला दिखना महत्वपूर्ण है ।
सत्य वचन महराज!
मुझे तो आज मालूम हुआ कि आप भी बिलॉग पर आ चुके हैं और उहो सन दुइ हज़ार साते में. अब रेगुलर विजिटते रहेंगे.

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

ओबामा के अमेरिका का प्रधानमंत्री
बनने से यह धारणा भी बदलती
हुई नजर आ रही है
अब न उजला होना महत्‍वपूर्ण है
बाहर का उजला होना तो महत्‍वपूर्ण है ही नहीं
अंदर का उजला होना चाहिए बस्‍स।

Pravasi Today ने कहा…

Dear Prem Janmejay,

I read your व्यंग्य--मेरे स्लमडाॅग जीजाजी ,its really very good.

Dr.R.Ramkumar ने कहा…

और मगर किन्तु सच्चाई यही है भाई कि श्याम की ही बलिहारी है , सब गौशाले उनके , सारी गयाय उनकी , सारा सफेद दूध उनका , ग्वालनें उनकी , मलाई उनका और मक्खन भी उनका । साहित्य में इतनी मक्खनबाजी किसी भक्त ने किसी और की नहीं की । और तो और बंशी जो चैन नामक भाव और उपलब्धि की है वह भी एकमात्र उनके हाथ में है। आप क्या कर सकते हैं --- न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी का राग भी तो नहीं आलाप सकते। तो ष्याम रंग में डूबने का रास्ता एकदम सही है। डाॅ. रा. रामकुमार , श्याम के प्रति श्रद्धा के साथ

Dr.R.Ramkumar ने कहा…

और मगर किन्तु सच्चाई यही है भाई कि श्याम की ही बलिहारी है , सब गौशाले उनके , सारी गयाय उनकी , सारा सफेद दूध उनका , ग्वालनें उनकी , मलाई उनका और मक्खन भी उनका । साहित्य में इतनी मक्खनबाजी किसी भक्त ने किसी और की नहीं की । और तो और बंशी जो चैन नामक भाव और उपलब्धि की है वह भी एकमात्र उनके हाथ में है। आप क्या कर सकते हैं --- न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी का राग भी तो नहीं आलाप सकते। तो ष्याम रंग में डूबने का रास्ता एकदम सही है। डाॅ. रा. रामकुमार , श्याम के प्रति श्रद्धा के साथ