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शनिवार, 13 सितंबर 2008

एटमी करार का फंडा

इस एटमी डील के चक्कर में कुछ डील हुई हैं, कुछ हो चुकी हैं और कुछ होंगी । भारतीय प्रजातंत्रा का दूसरा नाम हो ही गया है ले-दे का खेल। डील करे जाओं और सरकार चलाए जाओ । अब एटमी डील के चक्कर में --कुछ बिल्लियों को आशा थी सरकार गिरेगी और उनके भागों छींका पफूटेगा, कुछ सरकार से समर्थन लेने की नौटंकी करते रहे, कुछ अब सरकार गिराएंगे और कुछ अब गिरतों को संभालेंगें । ये सब होगा एक डील के तहत । अजब पफंडा है इस डील का, मुझे तो समझ नहीं आ रहा है । राजनीतिक डील मुझ जैसे अराजनीतिक को समझ भी कैसे आ सकती है, मैं तो ताश में होने वाली डील को जानता हूं जिसमें जो डील करता है वो पत्ते बांटने में बेईमानी भी कर लेता है ।
जब से भारतीय राजनीति जनसेवा के तुच्छ विचारों का त्याग कर स्व सेवा के महान विचारों से ओत प्रोत हुई है, मेरे मित्रा राध्ेलाल की राजनीतिक समझ बढ़ गई है । जिस प्रकार, जब-जब भाजपा को चुनाव-हानि की आशंका है तो विश्वेश्वर प्रभु ;केवल भारतवर्ष में द्धजन्म लेते हैं, जब-जब कांग्रेस संकट में होती है तो नेहरू गांध्ी परिवार अवतरित होता है, जब-जब चुनाव होते हैं तो तीसरा मोर्चा बनता है वैसे ही जब-जब भारतीय प्रजातंत्रा की मेरी समझ कम होती है राध्ेलाल जी अवतरित होते हैं ।
इन दिनों तो क्या पिछले कई महीनों से मैं एटमी करार के पफंडे को समझ नहीं पा रहा हूं । कई बार लगता है जैसे तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूं जैसा कोई सीरियल चल रहा है जो कभी भी सास- बहू एपीसोड में परिवर्तित हो सकता है ।
मैंनें राध्ेलाल से पूछा- प्यारे यह मामला इतना क्यों खिंच गया ?
-- खिंचा नहीं खींचा गया प्यारे!’
-- पर क्यों ?
- जिससे सत्ता का अध्कि से अध्कि सुख पाया जा सके । जैसे आजकल लगभग हर विकसित विकासशील देश के पास बम है पर उसे पफोड़ने का समय बम वाले को ही तय करना है वैसे ही एटमी करार वाले को तय करना है कि इस करार का बम कब पफोड़ना है ।
-- क्या कांग्रेस को उम्मीद थी कि लेपफट करार के लिए मान जाएगा ?
-- शायद कुछ लोगों को लग रहा था कि करार और करात में वर्णाें के थोड़े हेर-पफेर हैं इसलिए शायद महासचिव करात करार के लिए मान जाएं , पर...
-- पर क्या ?
-- अब अंतरराष्ट्रीय मसले तय करने के लिए उनके आका भी तो हैं । आकाओं के सामने तो सभी को घुटने टेकने पड़ते हैं, और पिफर चुनाव का सावन आने को है ऐसे में किसी दूजे संग क्या पींग बढ़ानी ?
-- एटमी करार से पफायदा होगा या नुकसान ?
-- प्रजातंत्रा में पफायदा और नुकसान तो राजनीतिक दलों का सोचा जाता है, जनता को तो साला...समझा जाता है। अब अगर कांग्रेस चुनाव में जीत गई तो उसका पफायदा और अगर हार गई तो उसका नुकसान और प्रतीक्षरत् प्रधनमंत्राी का पफायदा ।
- ये तो कांग्रेस का पफायदा नुकसान हुआ, मैं तो देश के पफायदे नुकसान के बारे में पूछ रहा था !




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- इस समय कांगे्रस ही देश है, जैसे एक समय में इंदिरा इज इंडिया हुआ करता था।
- आपका मतलब तब इंदिरा जी प्रधनमंत्राी थी और आजकल मनमोहन सिंह प्रधनमंत्राी हैं तो आजकल मनमोहन सिंह इंडिया हैं ।’ मैंनें अपने राजनीतिक ज्ञान का सिक्का जमाते हुए कहा ।
ये सुनकर राध्ेलाल जोर से हंसा और बोला- पांचवी क्लास की क्या कहूं आप तो राजनीति की पहली क्लास के भी लायक नहीं हैं । आप तो... भोंपू की कभी अपनी आवाज होती है ?

-- अच्छा राध्ेलाल जी,यह बताईए इध्र परमाणु करार हो जाता है और उध्र प्रधनमंत्राी-प्रतीक्षा- सूची वालों को यदि प्रधनमंत्राी की सीट मिल जाती है तो क्या वो सत्ता में आने पर करार को रद्द कर देंगें ?
-- अरे प्यारे, जिस अह्म मुद्दे, अयोध््या में मंदिर बनवाने की मांग लेकर वो लोग सत्ता में आए थे, सत्ता में आते ही उसे भूल गए ये तो ...
-- और वो जो अब तक सरकार में थे और सरकार से समर्थन वापस ले रहे हैं, जब चुनाव के बाद सांप्रदायिक ताकतों को हराने के लिए, दोबारा सरकार बनाने में उनका ‘बाहर’ से समर्थन चाहिए होगा तो क्या वो देंगें?
इस बार राध्ेलाल पिफर वैसे ही जोर से हंसा जैसे अक्सर वो मेरी मूर्खता पर हंसता है और बोला-- राजनीति में हरेक के दिन बदलते हैं और हरेक बदलता है और बिना बदले दिन नहीं बदलते हैं ।
अब इन बेचारों को देखो, इतने दिनों से सत्ता से दूर है न राज्य में और न केंद्र में ही कोई पूछ रहा है । ऐसे में बहुत कष्ट होता है जब आपके विरोध्ी सत्ता में हो और आप सत्त से कोसो दूर । राजनीति ऐसी चीज है जिसमें बिल्ली के हाथ में कभी भी छींका पफूट सकता है और यही कारण है कि अनेक बिल्लियां उस छींके का इतजार करती रहती हैं ।
इस एटमी करार ने उन्हें भी दस जनपथ से निमंत्रिात करवा दिया , प्रधनमंत्राी कार्यालय के दर्शन करवा दिए । उनके सहयोगी ने उन्हें प्रधनमंत्राी - कार्यालय ध्यान से दिखाते हुए कहा - देख लीजिए, हो सकता है अगली बार इस कार्यालय में आप बैठे हों ।
वो कैसे ?
--अब देखिए ये तो भारतीय राजनीति में पक्का हो गया है कि कोई पार्टी अकेले बहुमत नहीं पा सकेगी । एटमी करार तो होगा ही । अब कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी तो सरकार बनाने के लिए लेपफ्ट तो उसको समर्थन देगा नहीं । हमारी आपकी बात और है , सभी तो बार-बार थूक कर नहीं चाट सकते हैं न ! अब उफपर वाले की मेहरबानी से...
-- देखिए उफपर वाले की नहीं अल्लाह की मेहरबानी कहें
- वो ही कह देते हैं... सत्ता में बिना किसी की मेहरबानी के कहां आया जा सकता है ... तो मेहरबानी से पिछली बार वाली लोकसभा जैसा इस बार भी हाल हो गया तो आप प्रधनमंत्राी बने ही बने ।
हे एटमी डील तूं ध्न्य है कि तूने कितनी बिल्लियों के लिए छींके तैयार कर दिए हैं कि तूने अपने करार से कितनों का करार छीना है और कितनों को करार दिया है ।