पिछले माह पेज देखे जाने की संख्या

शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

व्यंग्य--हम निंदा करते है

व्यंग्य
हम निंदा करते हैं
0 प्रेम जनमेजय
हमने निदंा की है, हम निंदा कर रहे हैं और हम निंदा करते रहेंगें । जैसे-जैसे जब-जब धर्म की हानि होती है और प्रभु जन्म लेते हैं वैसे ही जब- जब इस देश में बम-विस्पफोट होता है, हममें निंदा जन्म लेती है और उसे हम करते हैं । हम कड़े स्वर में निंदा करते हैं, हम अति कड़े स्वर में निंदा करते हैं और हम अति अति कड़े स्वर में निंदा करते हैं । जितना बड़ा ब्लाॅस्ट होता है हमारी निंदा उतनी ही कड़ी होती है । हम चाहे कोई और कदम उठाने में कितनी ही देर कर लें पर निंदा करने में देरी नहीं करते हैं । आपने देखा ही होगा कि उधर ब्लाॅस्ट हुआ और हमारी निंदा ब्रेकिंग न्यूज में चमकने लगती है । इधर लोगों के घायल होने के समाचार, उनके मरने के समाचार फ्लैश कर रहे होते हैं और उधर हमारी सरकार के अति विशिष्ट लोगों द्वारा की गई निंदा चमक रही होती है । आप जानते नहीं हैं कि यह निंदा बड़ा ही महरम का काम करती है । जनता को लगता है कि सरकार खाली नहीं बैठी है, तत्काल कुछ तो कर रही है । हम केवल निंदा नहीं करते हैं अपितु निंदा के साथ मुआवजा भी बांटते हैं । हम हर मरने वाले के परिवार को कम से कम एक लाख की रक्म भी देते हैं । हमारी निंदा में कोरे शब्द नहीं हैं ।अगली बार वोट हमें ही देना मेरे आका !
निंदा करने में हम उंंच-नीच का ध््यान नहीं करते हैं, जिसे भी अवसर मिलता है वो निंदा करने को स्वतंत्र है। कुछ भी और करने से पहले हाई कमांड की इज+ाजत की आवश्यक्ता होती है पर निंदा करने के लिए हमें किसी की इज+ाजत की आवश्यक्ता नहीं पड़ती है । निंदा करने के लिए हम स्वतंत्र हैं । हम व्यक्तिगत रूप से निंदा करते हैं और कैबिनेट की मीटिंग बुलाकर सामूहिक रूप से भी निंदा करते हैं । जब भी ब्लाॅस्ट होता है हम निंदा करते ही हैं । इस निंदा में यू टर्न लेने की आवश्यक्ता नहीं है । आप तो जानते ही हैं कि राजनीति में कितनी बार थूक कर चाटना होता है और गलती से हाई कमांड की निंदा हो जाए तो... राम राम ।
हम निंदा करते हैं क्योंकि इतनी जल्दी हम कुछ और नहीं कर सकते । वैसे इस मामले में कोई कर भी क्या सकता है । अब तो हमारे पड़ोसी राज्य में प्रजातंत्र आ गया है और वो भी आतंकवाद से पीडि़त है । ऐसे में कोई क्या कर सकता है ? अब अमेरिका की बात और है । उसे हमारी तरह पड़ोस- धर्म थोड़े ही निभाना है । हम तो भारतीय हैं, शांति और अहिंसा के पुजारी, हम कोई अमेरिका की तरह गुंडे थोड़े ही हैं जो वहां बैठा हमारे पड़ोस के आतंकवादियों पर आक्रमण करता @ करवाता रहता है । चीन को जरा हाथ लगाकर दिखाए। वैसे आप यह तो जानते ही हैं कि चीन भी निंदा करने में कम ही विश्वास करता है ।
आप का जनरल नाॅलेज इतना तो होगा ही कि हम विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र हैं और हमे प्रजातांत्रिक मूल्यों का ख्याल रखना होता है । हम पर बहुत जिम्मेदारी है । अब अमेरिका को देखिए , कहने को तो स्वयं को प्रजातांत्रिक मूल्यों का रक्षक कहता है पर आतंकवादियों को समाप्त करने के नाम पर विश्व में कहीं भी आक्रमण कर देता है । वो तो डरपोक है । आपने देखा ही होगा कि 11 सितम्बर के धमाकों से वो कितना डर गया था । आज तक डरा हुआ है । उसके बाद से उसके यहां कुछ हुआ ? नहीं हुआ न? फिर भी डरा हुआ है । बिना कुछ हुए डरता है । जो डर गया समझो मर गया । हम तो बिल्कुल नहीं डरते । उसके बाद से हमारे यहां कितने धमाके हो गए । हर बार हमने धमाकों की कड़े शब्दों में निंदा की है। ऐसे समय में हमारी देखा-देखी अमेरिका भी निंदा कर देता है । धमाके हमारे यहां होते हैं, निंदा वो करता है । इस मामले में वो हमारा पिछ्छलग्गू है ... खी... खी...खी
अमेरिका डर जाता है और कार्रवाई करता है, हम डरते नहीं हैं इसलिए निंदा करते हैं । निंदा करना अत्यध्कि ही साहस का काम है जनाब । अच्छे- अच्छों को टैं बोल जाती है । अपनी आत्मा को कितना मारना पड़ता है ! अपने नपुंसक होने का अहसास...
हम स्वार्थी नहीं हैं, हम समानता के सिद्धांत में विश्वास करते हैं इसलिए खुद तो निंदा करते ही हैं, दूसरों को भी निंदा करने का भरपूर अवसर देते हैं । जिन राज्यों में हमारी सरकार नहीं होती हैं वहां हम उस राज्य सरकार की भी लगे हाथ निंदा कर लेते हैं और उसे भी अवसर देते हैं कि वह केंद्र की निंदा करे । ऐसा करने से मतदाता भ्रम में रहता है । प्रजातंत्र के स्वास्थ्य के लिए परम् आवश्यक है कि मतदाता भ्रम में रहे । न्यूकलर डील होने का भ्रम, सरकार को बाहर से समर्थन देने का भ्रम, महंगाई पर काबू पाने का भ्रम, जी डी पी का भ्रम आदि आदि भ्रम बने रहने चाहिएं ।
हम निंदा के लिए समुचित अवसर और पूरा समय प्रदान करते हैं । हमारी पकड़ में जो अपराधी आ जाते हैं, चाहें उन्हें फांसी की सजा घोषित हो चुकी हो, पर हम उसे समय पर समय देते जाते हैं कि जिसका जितना भी मन चाहे, जितना भी समय चाहिए, उसकी निंदा कर ले । आप तो जानते ही है जितनी अधिक निंदा होती है, पाप भी उतने ही धुलते हैं ।
कबीर के आंगन में तो एक निंदक रहा होगा, हमारे आंगन में तो कई निंदक अपनी कुटिया छवाए मुटियाते रहते हैं । हमें कभी राष्ट्रीय स्तर पर, कभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा जो करनी होती है । वैसे हे मतदाता तूं घबरा मत, तूं चाहेगा तो इस निंदा के अतिरिक्त हम कुछ और भी कर देंगें । चुनाव आने दे, तू जो चाहेगा वो करने का आश्वासन तो हम दे ही देंगें । तू कहेगा तो हम ढेर-सारी इंक्वारी करवा देंगें। प्रजातंत्र है, तेरा जितना मन चाहे, हमारी निंदा करता रह, बस वोट हमें देना मत भूलना।
चाहे शासक दल हो चाहे विरोधी, निंदा करने का अधिकार सबका है। कोई घटना की निंदा करता है तो कोई सरकार की। सबकी अपनी-अपनी रोटियां हैं जो जनता के जलते तवे पर सेंकी जाती हैं।

000000000000

रविवार, 9 नवंबर 2008

व्यंग्य -- कैसे हो जजमान ...

कैसे हो जजमान ...


आजकल मेरा अपार्टमेंट मोहल्ला रिटायर वाला हो रहा है । जिसे देखो रिटायर हो रहा है । ये सब रिटायर हैं पर टायर नहीं और ये दीगर बात है कि इनमें से कोई भी भूतपूर्व प्रधनमंत्राी नहीं है । टायर हो जाने से आदमी खुद तो घिसता ही है अपने आसपास के लोगों को भी घिसता है । हां साहब , हमारे यहां सब नौकरीपेशा लोग हैं , राजनीतिपेशा नहीं हैं जो कभी रिटायर ही नहीं होते इसलिए टायर नहीं होते । इन रिटायर हुए सज्जनों के कारण अल्पमत में आए मेरे जैसे नौकरीपेशा लोगों के सामने अभूतपूर्व संकट आ गया है -- अल्पमत मेें सरकारें तो चल सकती हैं पर जिंदगी नहीं । हम जब चाहे इन सज्जनों के द्वारा घेर लिए जाते हैं । जैसे अपनी शालीनता में हम घर आए मेहमान का स्वागत करने को विवश होते हैं, वोट मांगने आए हर दल के नेता को --- वोट आपको ही देंगें -- कहने को विवश होते हैं, वैसे ही रिटायर हुए इन बुजुर्गों की हर बात सुनने को विवश होते हैं । आप दफ्तर में देर होने के कारण पत्नी को लताड़ते हुए बस पकड़ने को भाग रहें हैं कि अपार्टमेंट के गेट पर कोई न कोई आपको पकड़ लेता है और लगता है अपने कार्यालयी अनुभव के किस्से सुनाने । बोस बाबू मौसम विभाग से रिटायर हुए हैं तो विश्वमोहन जी रक्षा मंत्राालय से । इसी प्रकार जगदीश बाबू वित्त मंत्रालय से और वासल बाबू शिक्षा - विभाग से , आदि, आदि अनादि।
उस दिन मैं बोस बाबू के घेरे में आ गया । वे मुझे अपार्टमेंट के गेट पर अतिआवश्यक मुद्रा में समझा रहे थे -- इस भारत देश के विशाल होने का अच्छा तो लगता है पर मौसम -विभाग संकट में आ जाता है । कोई एक-सा मौसम हो तो कोई निश्चिंतता हो । अब देखिए, गोआ, मुम्बई या चैन्नई जैसा राज्य के स्थान पर देश हो तो क्या संकट है ! यहां तो हर राज्य का अलग ही मौसम है । जिस मौसम में उत्तरी राज्यों में ठंड पड़ती है, इन राज्यों में धूप से शरीर जलता है .... ’’
अभी शायद वे अपने मौसम-ज्ञान से मुझे और अधिक आतांकित करते, जैसे आजकल अमेरिका आतंकित कर रहा है , ;वैसे कुछ ज्ञानियों को समझ नही आएगा कि अमेरिका भी आतंकित कर सकता है , पर ...द्ध उसी समय राजनीतिशास्त्र एवं हत्थकंडों के विशेषज्ञ कुलदीप अहूजा ने मुझे बचाने की मुद्रा में थाम लिया , बोले- चाहे कहीं का कैसा भी मौसम हो , ये अच्छा है कि हमारे यहां प्रजातंत्र है और प्रजातंत्र का एक ही मौसम होता है -- चुनाव । किसी भी प्रदेश का कैसा भी भौेगोलिक मौसम हो आजकल प्रजातंत्र की बदौलत पूरे देश का एक ही मौसम बचा है -- चुनाव । जैसे एक समय में अंग्रेजों के राज्य का सूर्य नहीं डूबता था, वैसे ही इस महान भारत में आजकल चुनाव का सूर्य नहीं डूबता है । या तो चुनाव आने वाले होते हैं या फिर आ गए होते हैं । ’’
इस बीच पुरुषों के ब्यूटि पार्लर विशेषज्ञ ; पुराने जमाने की नाई की दूकाने आजकल ब्यूटि पार्लर की संज्ञा से सम्मानित होते हैं द्ध से पद-मुक्त हुए स्वराज बहादुर ने कहा-- इस समय भारतीय राजनीति देश की जनता का सामूहिक मुंडन कर रही है । जिसे देखो , वह अपने उल्टे- सीधे उस्तरे से मूंडने में लगा हुआ है । जिसे मूंडने का अवसर नहीं मिल रहा है , वह किसी मूंडने वाले का दामन थामे चुनाव -सागर पार करने का जुगाड बिछा रहा है । चुनाव का यह सागर अत्यध्कि बहुमूल्य है , अनेक रत्न जो इसमें छिपे हुए है । इन रत्नों को पाने के लिए ज्ञानीजन चुल्लु भर सागर में भी गोते लगाने को तत्पर हैं । कुछ तो थूक जैसे पवित्र पदार्थ को चाटने और उसमें ,सुअवसर मिले तो, तैरने को दिलो जान से तैयार हैं । अनेक नेता नारायण मनमोहिनी रूप धारण किए सत्ता -अमृत हड़पने की शतरंज बिछाए ऐसे सुशोभित हो रहे हैं जैसे न्यायालीय असत्य में लिपटा बदसूरत सत्य।
पूरी भारतीय राजनीति की व्याख्या दो शब्दों में की जा सकती है -- नाई और जजमान । नाई उसें कहते हैं जो मूंडने में जन्मजात सिद्धहस्त होता है और जजमान उसे कहते हैं जो यह जानते हुए भी कि वह मुंडा जा रहा है , मुंडता है । वैसे नाई की हैसियत जजमान से कम आंकी जाती है , पर वह इतनी चतुराई से मूंडता है कि दिनों दिन उसकी हैसियत बढती जा रही है । नाई का दावा होता है कि वह अपने जजमान की खूबसूरती को बढाने वाला सेवक है । वो उस्तरा लिए पीछा कर रहा है और जजमान पीछा दुड़ाने को दौड़ रहा है । हमारे ऐसे सेवक हर पांच साल बाद , और आजकल सुना है , इनके मन में इतना सेवा भाव भर गया है कि कुछ महीने बाद ही सेवार्थ उपस्थित हो जाते हैं । आप को जरूरत हो न हो , यह आपकी सेवा में हाजि+र होकर , करबद्ध प्रार्थना -गीत गाते हैं ।
लोग सावन के अंधे होते हैं , मैं इन दिनो चुनाव का अंधा हूं , मुझे चारों ओर चुनाव ही चुनाव नजर आ रहा है । कहीं चुनाव हो रहे हैं और कहीं होने वाले हैं । वो जमाना गया, जब देशसेवक पांच साल में एक बार चुनाव लड़ लेते थे और लंबी तान कर सो जाते थे । आजकल तो राजनीति चैबीस घंटे की नौकरी हो गई है साहब ! दम मारने की फुरसत नहीं है । किसी पर कोई भरोसा नहीं रह गया है । न जाने कोई कब अपने प्रधनमंत्री होने की घोषणा करवा दे और आपकी बरसों की प्रतीक्षा पर पानी फेर दे ।
000000000