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रविवार, 14 दिसंबर 2008

व्यंग्य- शतरंज के नए खिलाड़ी

शतरंज के नए खिलाड़ी
0प्रेम जनमेजय

प्रेमचंंद की कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ के नवाबों को तो आप जानते ही हैं पर क्या स्वतंत्र भारत के बाद पैदा हुए उन नवाबों को भी आप जानते हैंं जिनके दिमाग में हर समय शतरंज बिछी रहती है। सामंतशाही का युग चला गया, उनके साथ उनकी वेश -भूषा चली गई और प्रजातंत्र देश में जवान होने लगा पर सामंतशाह नहीं गए, हां उन्होंने खद्दर धारण किया और और प्रजातंत्र को ओढ़ने बिछाने लगे। ऐसे खद्दरधारी दो नवाबों की कथा यह प्रेम जनमेजय आपसे कहता है, सुनें।
एक बिसात बाहर बिछी हुई है और एक बिसात अंदर बिछी हुई । दोनों नवाब शतरंज खेलने की तैयारी कर रहे हैं जैसे कोई वेश्या बाजार के बीच सजी हुई महफिल देखकर अपने को तैयार करती है। बाजार अच्छे-अच्छों को वेश्या जैसी तैयारी करने के लिए विवश कर देता है। ये दीगर बात है कि कितनी भी तैयारी के बावजूद आप बाजार की चाल को समझ नहीं पाते हैं।हमारे दोनों नवाब केवल शतरंज की चाले चलने में शातिर नहीं हैं अपितु राजनीति की शतरंज को भी खूब समझते हैं। बाजारवाद ने उन्हें अनेक चालें सिखा दी हैं । इसी चाल के चलते ये दोनों, अपनी नवाबी शान को बरकरार रखते हुए, बाहर तीतर बटेरो के लडने के खेल का इंतजाम कर और उसमें अपनी प्यारी जनता को उलझा, अंदर स्वयं शतरंज की चालें सुलझा रहे हैं।इनका मानना है कि जैेसे संतों को सीकरी से काम नहीं होता है वैसे ही जनता को इससे कोई मतलब नहीं होना चाहिए कि अंदर क्या हो रहा है। नवाब साहब जनता की कद्र करते हैं, उनके विचारों को सुनते हैं अतः जनता का भी फर्ज है कि वह नवाब साहब की कद्र करे और उनके सियासी कामों में दख्ल न दे।
तो जैसे कोर्ट चालू होता है और न्याय की आशा रखने वाले को शांति रखनी होती है, वैसे ही अंदर दोनों नवाब साहब सियासी चालें चल रहे हैं और आप शांति रखें। अंदर का माहौल कैसा है हम ये तो नहीं बता सकेंगें क्योंकि आप ठहरे जड़ मूर्ख जनता जिसे सियासी चालों की क्या समझ और आप अपनी नासमझी में बात का बतंगड़ बना डालेंगें। आप तो बस बाहर का गरमागरम माहौल देखिए और अपने खून को उबलने दीजिए। आप तो देखिए कितने तीतर बटेर लहू लुहान हुए हैं, उनका मजहब क्या है। आप तो अस्पतालों में कुछ लहूलुहानों को भरती करवाइए जिससे बाद में दौरा करते समय नवाब साहब उनके हाल चाल पूछ सकेंं, उन्हें कुछ मुआवजा दे सकें।

- अरी ओ लिपिस्टिक और पाउडर वाली,... तुम किस खेत की मूली हो जो यहां डोल रही हो और हमारे खिलाफ जनता को भड़का रही हो। जाओ, अपने-अपने घर जाओ। हमारी भी मां बहने लिपिस्टिक पाउडर लगाती हैं पर तुम्हारी तरह सड़कों पर छिनालगिरी नहीं करती है। कोई मरे जिए, वो सजी- धजी घर की शोभा बड़ाती हैं। ग्लैमर के साथ राजनीति नहीं होती है, राजनीति ही करनी है तो खद्दर पहनों, हमारी पार्टी में आओ, बिना कोई पार्टी ज्वाइन किए कहीं राजनीति होती है। ये सियासत की बातें हैं , तुम्हारा रसोई घर नहीं है। अभी तो हमने तुम्हें 33 प्रतिशत आरक्षण नहीं दिया है, तब ये हाल है? चलो, चलो नही ंतो हम तुम्हारी भी इंक्वारी करवा देंगें।
तो मित्रों, अंदर शतरंज चालू आहे! चालें चालू आहे! नवाबगिरी चालू आहे!
नवाब एक साहब ने पियादे को आगे बढ़ाया- जब हम सत्ता में थे तो हमने सख्त कानून लगाए।
नवाब दो साहब ने भी पैदल बढ़ाया और बोले- उसके बावजूद भी आतंकवादी हमले होते रहे।
नवाब एक साहब ने रुख को आगे बढ़ाया - जब भी कोई आतंकी हमला हुआ, हमने उसकी घनघोर निंदा की।
नवाब दो साहब ने पैदल ही बढ़ाया और बोले - हमने उससे कड़े शब्दों में तुमसे अधिक निंदा की। वैसे तो हमारी पार्टी में किसी को बिना हाई कमांड की इजाजत के कुछ भी कहने की अनुमति नहीं है परंत हमने निंदा करने के मामले में छूट दी हुई है। जो चाहे कितनी भी निंदा कितने ही कड़े स्वर में कर सकता है।
नवाब एक साहब ने घोड़ा बढ़ाया और बोले- हमने अपने गृह- मंत्री और मुख्यमंत्री को हटा दिया।तुमने...

नवाब दो साहब ने भी घोड़ बढ़ाया और बोले- हमें जनता समझकर बरगलाने की कोशिश मत करिए,।ये कहिए ,हटा कर कहीं रख दिया। जब इस्तेमाल करना होगा स्टोर से निकाल लेंगें। तुमने इसलिए हटाया क्योंकि तुम आम चुनाव निकट आया देख डर रहे हो। तुम्हारे समय में इतने आतंकवादी हमले हुए तब तो नहीं हटाया किसी मंत्री या मुख्य मंत्री को? हमें ये बताओ कि ये हो क्या रहा है?
- वही जो तुम्हारे समय में हो रहा था।
- हमारे समय में तो जो भी कुछ हो रहा था,ठीक ही हो रहा था।
- हमारे समय में भी सब कुछ ठीक ही हो रहा है।
-खाक ठीक हो रहा है। अगर सब कुछ ठीक हो रहा है तो बाहर खड़े लोग तुमसे सवाल क्यों कर रहे हैं?
- जरा ध्यान से सुनो, वे हम दोनों से सवाल कर रहे हैं।
- सवाल करने का हक उन्हें किसने दिया?
- तुमने।
- नहीं तुमने
-संसद पर हमला...
-मां...तुमने
- कारगिल...
-बहन... तुमने
-अफजल को फांसी
-तुमने...तुमने
- सरोजिनी नगर, बैंग्लौर,
-- तुमने...तुमने
- गोधरा
-तूने
- मुम्बई
-तूने
-तूं
-तूं
तूं ही तूं।प्यार में जब गुफतगू होने लगी, आप से तुम, तुम से तूं होने लगी। इस प्यार में एक दूसरे को नंगा करने वाले दोनों नवाब नंगे हो गए।
दोनों एक दूसरे की नंगई को देखकर ईष्या करने लगे कि ये साला मुझसे इतना अच्छा नंगा कैसे ?
उन्होनें देखा कि जनता उनकी नंगई का आनंद नहीं उठा रही है अपितु गुस्से से लाल है। ये जनता को क्या हो गया, पहले तो वह नंगई का खूब आनंद उठाती थी।
नवाब एक साहब ने शतरंज समेटी और बोले - लगता है अब ये लोग हमें यहां शतरंज नहीं खेलने देंगे, चलिए कहीं और चलें।
फिर उठकर, दोनों कहीं और चल दिए।
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