tag:blogger.com,1999:blog-69254368475231492882023-11-16T08:35:25.916-08:00प्रेम जनमेजयव्यंग्य को एक गंभीर कर्म तथा सुशिक्षित मस्तिष्क के प्रयोजन की विधा मानने वाले आधुनिक हिंदी व्यंग्य की तीसरी पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं । राजधानी में गंवार , भ्रष्टाचार के सैनिक आदि 14 व्यंग्य संकलन। सीता अपहरण केस चर्चित व्यंग्य नाटक हरिशंकर परसाई , शरद जोशी , व्यंग्यश्री , श्रीनारायण चतुर्वेदी , दुष्यंत कुमार अलंकरण आदि सम्मानों से सम्मानित। ‘व्यंग्य यात्रा’ के संपादक। प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.comBlogger45125tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-11414381602160232702019-07-23T23:16:00.002-07:002019-07-23T23:17:34.672-07:00प्रेम जन्मेजय की व्यंग्य रचना - धोखेबाज़ मौसम की जय हो
धोखेबाज मौसम की जय हो!
प्रेम जन्मेजय की व्यंग्य रचना - 'धोखेबाज़ मौसम की जय हो '
ये नारा मेरा नहीं है, राधेलाल का है। कुछ प्रजातंत्र के मारे होते हैं और कुछ प्रजातंत्र को मारने वाले होते हैं। बेचारा राधेलाल प्रजा है अतः प्रजातंत्र का मारा है। हर समय सड़क से संसद की ओर टकटकी लगाए देखता रहता है। उसे विश्वास है कि एक दिन पश्चिम से सूर्य अवश्य निकलेगा।
प्रजातंत्र प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-41325585082122470822019-07-11T00:13:00.001-07:002019-07-11T00:13:22.658-07:00व्यंग्य रचना ,'यह भी ठीक, वह भी ठीक'
यह भी ठीक, वह भी ठीक
प्रेम जनमेजय की व्यंग्य रचना -यह भी ठीक, वह भी ठीक
बात उन दिनों की है जब मध्यम वर्ग के लिए कार एक सपना हुआ करती थी। कुछ के सपने साकार हो जाते हैं, कुछ के निराकार रहते हैं। निराकार सपने आत्महत्या कराते हैं। कुछ को कार मिल जाती है और कुछ की बेकारी बरकारार रहती है।
उन दिनों स्कूटर की अपनी शान थी। लड़की पटाने से लेकर बढ़िया दहेज जुटाने तक काम में आता था। स्कूटर पर बैठे आदमी कीप्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-71122239294996916562016-03-13T00:41:00.003-08:002016-03-13T00:41:31.862-08:00‘व्यंग्य यात्रा’ अंक 45
‘व्यंग्य यात्रा’ के अंक 45 का प्रकाशन हो गया है।इस अंक का मुख्य पृष्ठ कुंवर रविंदर की कलाकृतिपर आधारित है।
इस अंक में आप पढ़ सकते हैं-पाथेय में- श्रीलाल शुक्ल, रवींद्रनाथ त्यागी, महीप सिंह की रचनाएं। प्रताप सहगल का महीप सिंह पर संस्मरणचिंतन में- ‘समकालीन यथार्थ और व्यंग्य’ पर गौतम सान्याल, सूरज प्रकाश, सूर्यबाला, प्रेम जनमेजय, लालित्य ललित एवं सुमित प्रताप सिंह तथा निर्मिश ठाकरप्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-52739539758486699732015-06-26T23:16:00.002-07:002015-06-26T23:16:38.193-07:00' व्यंग्य यात्रा ' का 43 वां अंक - 'राग व्यंग्य विमर्श '
मित्रों ,
' व्यंग्य यात्रा ' का 43 वां अंक - 'राग व्यंग्य विमर्श ' प्रेस में चला गया है। इसका मुख्य कवर प्रसिद्द चित्रकार एवं कवि ,केनेडा निवासी , मंजीत चात्रिक की कलाकृति पर आधारित है।
इस अंक में
पाथेय में: गोपालप्रसाद व्यास पर रामशरण जोशी, कैलाश वाजपेयी पर दिविक रमेश,कृष्णदत्त पालीवाल पर हरीश नवल एवं अवधनारायण मुद्गल पर महेश दर्पणचिंतन मेंःव्यंग्य तज़मीन - निर्मिश ठाकर। ‘व्यंग्य का प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-20225377941520598432014-09-14T20:20:00.003-07:002014-09-14T20:20:46.101-07:00' हिंदी उत्सव ' के ' सुअवसर' पर
मित्रों , कल ' हिंदी उत्सव ' के ' सुअवसर' पर एक टी वी चैनल में , अनेक भौंडे सौंदर्य प्रसाधनो से सजाकर बाजार में बैठायी गयी हिंदी के 'शुभचिंतक ' उसके हर ठुमके पर वाह ! वाह ! कर रहे थे और करवा रहे थे। गुलशन नंदा , प्यारेलाल आवारा , ओम प्रकाश शर्मा की गदगदायी एवं महावीर प्रसाद द्विवेदी , रघुवीर सरीखी सर पीटती, आत्माएं प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-10455057667674235902014-09-02T00:11:00.001-07:002014-09-02T00:11:51.485-07:00
' व्यंग्य यात्रा ' एक दशक की यात्रा के अंतिम पड़ाव पर है।'शरद जोशी एकाग्र का दूसरा पड़ाव' अंक 39 ' में हैंकृष्णदत्त पालीवाल, अजातशत्रु , रोमेश जोशी, विनोद शाही, यज्ञ शर्मा ,सूर्यबाला, ज्ञान चतुर्वेदी ,शारदा सारस्वत शिव शर्मा मालती जोशी, अवधेश व्यास, विनोद शंकर शुक्ल ,गिरीश पंकज, बालेन्दु शेखर तिवारी, डाॅ. शशि मिश्रा, तरसेम गुजराल, विनोद साव, अजय अनुरागी,अतुल चतुर्वेदी, मनोहर पुरी, प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-82445368011939279572014-09-02T00:04:00.000-07:002014-09-02T00:04:39.163-07:00 व्यंग्य -बरसात ने दिल तोड़ दिया ...
बरसात ने दिल तोड़ दिया ...
व्यंग्यकार को संपादक जी का फोन आया - हमारे लिए बरसात पर कुछ लिख दीजिए।’
वैसे तो व्यंग्यकार कलम हाथ में गहे , कागद समक्ष रखे तैयार रहता है कि कब संपादक उससे अनुरोध करे और वह तत्काल कुछ भी लिख भेजे। पर व्यंग्यकार तो सन्न था। उसके लिए, बरसात पर कुछ लिख दीजिए जैसा अनुरोध ऐसा ही था जैसे किसी भ्रष्टाचारी से बिना सेवा शुल्क लिए काम करवाने का अनुरोध अथवा हमाम के नंगों से प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-1616647254783106582013-02-13T22:48:00.001-08:002013-02-13T22:48:33.632-08:00अप्रकाशित उपन्यास अंश --प्रभु रचि राखा
सूर्यवंशी राजा राम के राज्य में सूर्य उल्लास की किरणो से पूरी अयोध््या को आलोकित कर रहा है। सूर्य अस्ताचल की ओर जाते समय यह दायित्व चंद्र को सौंप जाएगा जिससे कोई भी क्षण उल्लास विहीन न हो।
अयोध््या में राम -राज्य स्थापित हो चुका है। राम राज्य की यह स्थाप्ना वैसी नहीं है जैसी कि लंका में हुुई है। अयोध््या में तो सत्ता का हस्तांतरण हुआ है। लंका में तो विजय के उपरांत नृप विभीषण ने सत्ता ‘संभाली’ प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-7003458756384429972013-02-13T22:44:00.003-08:002013-02-13T22:45:13.092-08:00पुनः पुनः फिर जी..
पुनः पुनः फिर जी...
जैसे -किसी नेता को हारा चुनाव जीतने पर, किसी भ्रष्टाचारी को बेदाग भ्रष्टाचार करने पर, वकील को झूठा मुकदमा जीतने पर, पुलिसवाले को दोनों पार्टियों के ‘सार्थक’ सहयोग से कत्ल का केस निपटाने पर, विद्यार्थी को बिना पकड़े नकल द्वारा परचा पूरा करने पर,धर्मगुरु को काम और अर्थ का फल प्राप्त करने पर -आलौकिक सुख प्राप्त होता है, वैसा प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-91722951535682269412012-10-01T21:01:00.003-07:002012-10-01T21:01:25.935-07:00चौराहे पर गांधी
चौराहे पर गांधीमंसूरी में, लायब्रेरी चौक परराजधानी की हर गर्मी से दूरआती -जाती भड़भडातीसैलानियों की भीड़ में अकेला खड़ासफेदपोश, संगमरमरी, मूर्तिवत , गांधीक्या सोच रहा होगा --
अपने से निस्पृहभीड़ के उफनते समुद्र मेंस्थिर,निस्पंद,जड़नहीं होता इतना तो कोई हिमखंड भीखड़ा ।क्या सोच रहा है, गॉंधी ?सोचता हूॅं मैं ।कोटि- कोटि पगइक इशारे पर जिसके, बसनाप लेते थे साथ- साथ हज़ारों कदमअनथकवो ही थका प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-60635660184513936452012-08-14T17:48:00.000-07:002012-08-14T17:48:13.005-07:00कैरियर या राष्ट्र
मैंने अपने पोते से पूछा,‘‘ यह भारत क्या है, जानते हो ?’ आप तो जानते ही हैं कि हमारी अति आधुनिक पीढ़ी हमारे प्रश्नों के उत्तर कम देती है, प्रश्न के उत्तर में प्रश्न ही करती है। संचार माध्यमों एवं कंप्यूटर के अति आधुनिक उपकरणों से लैस यह पीढ़ी आपको अति पिछड़ा हुआ समझती है, अतः यह आपको पिछड़ेपन का आरक्षण तो दे सकती है, अपने साथ होने का अहसास एवं प्रश्न पूछने की प्रतिष्ठा नहीं दे सकती है। इसी प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-15565302911934304842012-08-14T17:47:00.001-07:002012-08-14T17:50:52.525-07:00
कैरियर या राष्ट्र
0प्रेम जनमेजय
मैंने अपने पोते से पूछा,‘‘ यह भारत क्या है, जानते हो ?’ आप तो जानते ही हैं कि हमारी अति आधुनिक पीढ़ी हमारे प्रश्नों के उत्तर कम देती है, प्रश्न के उत्तर में प्रश्न ही करती है। संचार माध्यमों एवं कंप्यूटर के अति आधुनिक उपकरणों से लैस यह पीढ़ी आपको अति पिछड़ा हुआ समझती है, अतः यह आपको पिछड़ेपन का आरक्षण तो दे सकती है, अपने साथ होने का अहसास एवं प्रश्न पूछने की प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-58688489722984936632011-10-28T00:58:00.000-07:002011-10-28T01:00:11.407-07:00साहित्यपुर का संत-- श्रीलाल शुक्लअभी- अभी दुखद समाचार मिला कि हमारे समय के श्रेष्ठ रचनाकार एवं मानवीय गुणों से संपन्न श्रीलाल शुक्ल नहीं रहे। बहुत दिनों से अस्वस्थ थे परंतु निरंतर यह भी विश्वास था कि वे जल्दी स्वस्थ होंगे। परंतु हर विश्वास रक्षा के योग्य कहां होता है। यह मेरे लिए एक व्यक्तिगत क्षति है। उनके जाने से एक ऐसा अभाव पैदा हुआ है जिसे भरा नहीं जा सकता है। परसाई की तरह उन्होंने भी हिंदी व्यंग्य साहित्य को ,अपनी प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-56698592822610594482011-09-30T23:05:00.000-07:002011-09-30T23:09:30.220-07:00व्यंग्य यात्रा का नया अंक जुलाई-सितंबर 2011व्यंग्य यात्रा का नया अंक जुलाई-सितंबर 2011इस अंक में आप पढ़ सकते हैंपाथेय में - सूरज प्रकाश द्वारा अनूदित जाॅर्ज आॅर्वेलका संपूर्ण उपन्यास ‘एनिमल फार्म’तंबी दुरई के मराठी व्यंग्यतट की खोज में- स्तंभ लेखनः दशा और दिशा पर ज्ञान चतुर्वेदी, अशोक चक्रधर, आलोकपुराणिक,शरद उपाध्याय, अविनाश वाचस्पतिअतुल चतुर्वेदी आदि के विचारत्रिकोणीय में ः विष्णु नागर पर केंद्रित विष्णु नागर का आत्मकथ्य, प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-45227326876078954752011-06-02T01:34:00.000-07:002011-06-02T01:40:29.177-07:00व्यंग्य यात्रा का अंक २६-२७ (जनवरी- जून २०११ )इस अंक में आप पढ़ सकते हैंपाथेय में मराठी भाषा कीयज्ञ शर्मा द्वारा अनुदित श्रीपाद कृष्ण कोहल्टकर ,रामगणेश गडकरी,चिं.वि. जोशी,पु.ल. देशपांडेकी चुनी हुई रचनाएं चिंतन में भारतीय भाषाओं में व्यंग्य : मराठी भाषा पर प्रो. विजय कलमधार,उषा दामोदर कुलकर्णी.,मीरा दाढे,आचार्य प्रल्हाद केशव अत्रेप्रेम जनमेजय का आलेख -अज्ञेय की व्यंग्यप्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-47418197666612955122011-04-21T20:20:00.000-07:002011-04-21T20:22:23.227-07:00व्यंग्य -अपनी शरण दिलाओ, भ्रष्टाचार जी !अपनी शरण दिलाओ, भ्रष्टाचार जी ! पत्नी ने मुझसे कहा- सुनो अब और नहीं सहा जाता। या तो आप मुझे तलाक दे दो या फिर अपने को सुधार लो।’ सफेद-बाल प्राप्त अवस्था पति से कोई पत्नी ऐसा कहती है तो लगता है कि पति ने चाहे सफेद बालों को काला नहीं किया पर उसके श्याम मुख पर कालिख लगने वाली है। उसकी प्रतिष्ठा का सिंहासन डोलने लगता है। नारी-विमर्श, यौन-उत्पीड़न आदि के चारों ओर नारे लग रहे हों और कानून प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-9802263090341545082011-04-18T19:52:00.000-07:002011-04-18T20:01:04.414-07:00कविता की प्रासंगिकता: संदर्भ अज्ञेय, नागार्जुन, शमेशर बहादुर सिंह, एवं केदारनाथ अग्रवाल----दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की रपटपिछले दिनों कॉलेज ऑफ़ स्टडीज में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सहयोग से दो दिवयीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया, प्रस्तुत है उसकी विस्तृत रिपोर्ट दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठीकविता की प्रासंगिकता: संदर्भ अज्ञेय, नागार्जुन, शमेशर बहादुर सिंह, एवं केदारनाथ अग्रवालगहरी प्रश्नवाचकता के कवि हैं अज्ञेय,शमशेर, नागार्जुन और केदार--अशोक वाजपेयीकवियों को बंधी बंधाई दृष्टि से न देखा जाए - निर्मला प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-48691137530589931482010-09-24T22:13:00.000-07:002010-09-24T22:21:10.983-07:00श्रद्धेय कन्हैयालाल नंदन 25 सितंबर को स्वर्गवासकन्हैयालाल नंदन-एक जीवंत नौकुचिया तालमैं पिछले 36 वर्षों से नंदन जी को व्यक्तिगत रूप से जानता हूं और हमारे रिश्ते की शुरुआत 36 के आंकड़े से ही हुई पर यह 36 का आंकड़ा जल्दी ही 63 के आंकड़े में बदल गया । मैं पहली बार सन् 1974 में मिला था और वह मिलना एक घटना हो गया । इस घटना पर आधारित एक लेख मैंनें लिखा था -- सही आदमी गलत आदमी। पर जैसे समय बीता, उसने बताया कि रिश्तो को सहेजकर रखने वाला तथा उसे बुरी प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-89820262727090456862010-08-15T00:00:00.000-07:002010-08-15T00:01:34.088-07:00आजादी के मायनेआजादी के मायनेबहुत गहरे मायने हैं हमारे देश की आजादी के। इतने गहरे की आप जितना डूबेंगें उतना ही लगेगा कि आप स्वयं को अज्ञानी समझेंगें। इन मायनों को समझने के लिए किसी शब्दकोश की आवश्यक्त नहीं है। वैसे जैसे प्रेम, प्यार, घृणा, अत्याचार, भ्रष्टाचार आदि के मायने नहीं बदलते हैं वैसे ही आजादी के मायने भी कभी नहीं बदलते हैं। हां आजादी का प्रयोग करने वाले बदलते रहते हैं। आजादी से पहले अंग्रेज शासकों इस प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-19240165305409846612010-08-01T21:09:00.000-07:002010-08-01T21:10:43.922-07:00हंगामा है क्यूं बरपा...सन्दर्भ विभूति नारायणहंगामा है क्यूं बरपा...साहित्य मे हंगामे न हो तो साहित्य किसी विधवा की मांग या फिर किसी राजनेता का सक्रिय राजनीति से दूर जैसा लगता है। अब किसी ने नशे में कुछ की दिया है तो इतना हंगामा मचाने की क्या आवश्यक्ता है। पी कर हंगामा करना कोई बुरी बात है। अब पीकर हंगामा न हो तो पीने पर लानत है, हुजूर!एक अकेले विभूति ने थोड़ी पी है, इसे पीने वाले तो अनेक बुजुर्ग मठाधीश रचनाकार साहित्य जगत में हैं। न न न उसप्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-48113239063640178522010-05-13T19:46:00.000-07:002010-05-13T19:50:33.268-07:00हिंदी ब्लोगिंग की दिशा-दशा- मुकेश चन्द्र से बातचीतअपनी चिंतनशील वैचारिक अभिव्यक्ति की तीव्रता के लिए ब्लॉगिंग को माध्यम बनाएं :प्रेम जनमेजयसोमवार, १० मई २०१०श्री प्रेम जनमेजय आधुनिक हिंदी व्यंग्य की तीसरी पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं। पिछले तीन दशक से साहित्य रचना में सृजनरत इस साहित्यकार ने हिंदी व्यंग्य को सही दिशा देने में सार्थक भूमिका निभायी है। प्रेम जनमेजय व्यंग्य- लेखन के परंपरागत विषयों में स्वयं को सीमित करने में विश्वास नहीं करते है .प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-71019783733455469632010-04-02T01:19:00.000-07:002010-04-02T01:23:55.346-07:00अज्ञेय स्मारक व्याख्यान-2010प्रेम जनमेजय द्वारा दिए गए व्याख्यान का आलेखशाश्वती 235, रिहाड़ी मोहल्ला, जम्मू . 180005/ मो. 9419210100/ 14.03.2010अज्ञेय स्मारक व्याख्यान-2010अज्ञेय व्याख्यानमालाः बदलते सामाजिक परिवेश में व्यंग्य की भूमिका’ पर प्रेम जनमेजय का व्यख्यान मित्रों, मैं उस पीढ़ी का हूं जिसने के स्वतंत्रता-शिशु की गोद में अपनी आंखें खोली और जो इस देश के साथ बड़ा होता हुआ आज बुजुर्ग हो गया है। ये दीगर बात है कि देश जवानी के दौर में है। मेरी पीढ़ी वो प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-18769370955441890712010-03-27T04:25:00.000-07:002010-03-27T04:25:49.434-07:00प्रेम जनमेजय: वसंत, तुम कहां हो?प्रेम जनमेजय: वसंत, तुम कहां हो?प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-70538862001973007532010-03-27T04:23:00.000-07:002010-03-27T04:25:03.179-07:00वसंत, तुम कहां हो?वसंत, तुम कहां हो? मैं बहुत दिनों से वसंत को ढूंढ रहा था। पता चला कि इस बार वो 20जनवरी को दिखा था, पर उसके बाद पता नहीं कहां चला गया। वसंत ने तो मुझसे उधार भी नहीं लिया है कि वो मुझ से मुंह चुराए। मैं किसी क्रेडिट कार्ड बनवाने वाली, उधार देने वाली, बीमा करने वाली या फिर मकान बेचने वाली, कंपनी के काल सेंटर में भी काम भी नहीं करता हूं कि वो मुझसे बचकर चले। वसंत किसी मल्टी नेशनल कंपनी में तो प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-6925436847523149288.post-74345081226687717412009-10-16T05:41:00.000-07:002009-10-16T05:48:46.561-07:00प्रेम जनमेजय का व्यंग्य-अंधेरे के पक्ष में उजालाप्रिय/सम्माननीय झिलमिलाते दीयों की जीवंत मंगल वेला में आप सबको दीपावली की मंगलकामनाएं एवं हार्दिक बधाई प्रेम जनमेजय एवं परिवारअंधेरे के पक्ष में उजाला प्रेम जनमेजय मेरे मोहल्ले में अनेक चलते किस्म के लोग रहते हैं। मेरे मोहल्ले में पुलिस, न्यायालय, संसद, साहित्य, प्रेम जनमेजयhttp://www.blogger.com/profile/17737952068937436374noreply@blogger.com13