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शनिवार, 27 मार्च 2010

वसंत, तुम कहां हो?


वसंत, तुम कहां हो?

मैं बहुत दिनों से वसंत को ढूंढ रहा था। पता चला कि इस बार वो 20जनवरी को दिखा था, पर उसके बाद पता नहीं कहां चला गया। वसंत ने तो मुझसे उधार भी नहीं लिया है कि वो मुझ से मुंह चुराए। मैं किसी क्रेडिट कार्ड बनवाने वाली, उधार देने वाली, बीमा करने वाली या फिर मकान बेचने वाली, कंपनी के काल सेंटर में भी काम भी नहीं करता हूं कि वो मुझसे बचकर चले। वसंत किसी मल्टी नेशनल कंपनी में तो काम करने नहीं लग गया है। मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले युवक, कब घर आते हैं और कब जाते दफतर जाते हैं, मोहल्ले की क्या औकात, मां-बाप को पता ही नहीं चलता है। हो सकता है किसी कंपनी ने वसंत का अपने नाम पेटेंट करवा लिया हो और वो बेचारा हाथ बांधे अपने मालिक की सेवा में खड़ा हो।
पिछले वर्ष, एक दिन वसंत रास्ते में मिल गया, पर मैं पहचान नहीं सका। उसके चेहरे पर पतझड़ का वैसा ही सूखापन था जैसा सूखापन आजकल राजनीति में नैतिकता का है। उसका चेहरा किसी भूखे के पेट की तरह सख्त था और आंखों से किसी गरीब के जीवन का सूनापन झांक रहा था। होली के आसपास कौन ऐसे वसंत को पहचान सकता है? पर हो सकता है इसबार उसका चेहरा बदल गया हो। पिछले साल तो मंदी थी, इस बार तो तेजी आने वाली है।
मैंनें तय कर लिया कि इस बार तो वसंत को ढूंढ ही निकालूंगा। महात्मा बुद्ध ज्ञान की खोज में महलों का सुख त्यागकर रात को निकले थे, मैं दिन में ही, कॉलेज में पढ़ाने का सुख त्यागकर, निकल पड़ा। कालेज में पढ़ाने का सुख, महलों के सुख से कम नहीं है। आप पढ़ाते नहीं पर फिर भी माना जाता है कि आप पढ़ाते हैं।
वसंत की खोज में निकला ही था कि देखा नुक्कड़ के मकान के बाहर पत्नी अपनेे पति को तिलक करते हुए कह रही है- जाओ प्रिय, चार माह के लिए तुम देश सेवा के लिए जाओ। चाहे मेरे घर का जितना भी बजट बिगड़ जाए, तुम तो देश का बजट बनाकर आओ। राष्ट्रहित में मैं चार महीने के विरह का पतझड़ सह लूंगी।’
जहां दीये तले अंधेरा होता है, वहां दीये उपर उजाला होता है, जहां विरह का पतझड़ होता है, वहां मिलन का वसंत भी होता है। यह सोचकर मैंनें पूछा- हे देवी, आप विरह का पतझड़ क्यों सह रही हैं?’’
‘मेरे पति बजट- बाबू हैं। इन्हें देश का बजट बनाने वित्त मंत्रालय की कैद में जाना है। जब तक बजट नहीं बनेगा मेरे जीवन में विरह का पतझड़ छाया रहेगा।’
मैंनें बजट बाबू से कहा- आपकी पत्नी के जीवन में तो विरह का पतझड़ छाया होगा और आपके जीवन में बजट का वसंत छाएगा। इसका मतलब वसंत आपके साथ कमरे में बंद रहता है।’
- वसंत, हमारे साथ कमरे में! वो तो हमसे डरता है, हमारे पास पफटकता नहीं कि कहीं हम उसपर सर्विस टैक्स न लगा दें। वित्त मंत्री के तीरों से अच्छे-अच्छे घबराते हैं, वसंत किस खेत की मूली है। जाओ उसे किसी मॉल में ढंूढो।’
मैं वसंत को ढूंढने निकल पड़ा। मुझे लगा कि कहीं वो दाल और चीनी की तरह बाजार से तो गायब नहीं हो गया। पर दाल और चीनी की तो गरीब को आवश्यक्ता होती है, वसंत की नहीं, वसंत की तो अमीरों को आवश्यक्ता होती है। उनके जीवन में तो बारहमासी वसंत छाया रहता है, नहीं छाता है तो बाजार से खरीदकर छवा लेते हैं। वो सारी चीजें, जिनकी आवश्यक्ता अमीरों को होती है, वो कभी बजार से गायब नहीं होती हैं। फ्रिज, टीवी,ए सी, बड़ी-बड़ी कारें, साधन सम्पन्न कोठियां, बेईमानी, भ्रष्टाचार, अनैतिकता आदि आपने कभी गायब होते देखे हैं। ये तो बाई वन गेट वन फ्री यानी एक के साथ दूसरा मुफ्त पाओ की शैली में मिलते हैं।
आजकल बाजार से जो चीज गायब हो रही है, जिसके भाव बढ़ रहे हैं , उसका पता कृषि-मंत्री को होता है। आप तो जानते ही हैं कि हमारे मंत्री किसी जादूगर से कम नहीं होते हैं। जब मंत्री बनते हैं तो किसी सुदामा से कम नहीं होते हैं पर ऐसा जादू करते हैं कि झोपड़ी के स्थान पर महल बन जाते हैं। जादूगर चीजों को आपकी आंखों के सामने ऐसे गायब करता है कि आप देखते रह जाते हैं। और जो चीज गायब करता है, वो ही तो बता सकता है कि वो चीज गायब होकर कहां गई है। इसलिए मैं भी गायब वसंत के बारे में पता करने के लिए कृषि-मंत्री के पास चला गया।
मैंने कृषि-मंत्री से पूछा,‘‘ आपने वसंत को देखा है? कहीं मिल नहीं रहा है।’’
- कौन वसंत ?
- वसंत, अपना वसंत।’’
- अपना मराठी मानुस! उसके बारे में अप्पन खुलके बात नहीं करेगा। उसका खुल्लमखुल्ला ठेका तो बाबा साहेब के पास है, हमारा अंडरस्टैंडिंग तो बस छुपमछिपाई का...
- नहीं मराठी मानुस वाला वसंत गायब नहीं हुआ है, वो तो जैसे दाल और चीनी गायब हुए हैं...
- ओ अच्छा, वसंत नाम का कोई किसान गायब हो गया है। वो गायब नहीं हुआ होगा, उसने आत्महत्या कर ली होगी, उसे ढूंढना बंद ही कर दो।’ इस शोक में उन्होंनें बिना चीनी के चाय पी और बोले,‘देख लेना, कहीं वसंत का निर्यात तो नहीं हो गया।’’ यह कहकर उन्होंनें हाथ में क्रिकेट की बॉल पकड़ ली और उससे कैच -कैच खेलने लगे। मुझे लग गया कि यहां वसंत का पता नहीं मिलेगा, यहां तो कैच होने वाली वो बालें दिखेंगी जो स्विस बैंक में जमा करने लायक होती हैं।
मैंनें रिक्शेवाले से पूछा- ये वसंत कहां है, पता है?
- न, हम तो कल ही गांव से शहर आए हैं, कोई सवारी नहीं मिली है, आप ही बता दो कहां चलना है और जो चाहे दे दो।’
- वसंत किसी मोहल्ले का नाम नहीं है, वसंत तो मौसम का नाम है। तुमने देखा होगा, वसंत आता है तो कोयल कूकने लगती है और बागों में फूल खिल जाते हैं।’
- बाबू हम तो जब से आए हैं, कार-स्कूटरों की चिल्ल पों ही सुनी है। कोयल की कूक तो गांव में सुनी थी। बाबू जब पेट में भूख लगी हो तो फूल कहां दिखाई देते हैं। और पिफर हमें तो चारों ओर बिल्डिंग ही बिल्डिंग नजर आती हैं, इन पत्थरों में फूल कहां खिलेंगें? बाबू , आप कार-स्कूटर में बहुत बार वसंत को ढूंढते होंगे आज मेरे रिक्शे पर ही ढूंढ लें। आपका ढूंढना हो जाएगा और मेरे पेट को दो रोटी मिल जाएंगी।’
मुझे समझ आ गया कि मैंनें गलत दरवाजा खटखटा दिया है। भूखे पेट तो गोपाल का भजन नहीं हो सकता वसंत की कौन कहे। गंवई गंवार कहीं का... बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद... अनाड़ी भूखा क्या जाने शेयर बाजार का सैंसेक्स या देश की जी डी पी !
सुना है कि वसंत वी आई पी हो गया। वो आतंकवदियों की हिट लिस्ट में है। उसके चारों ओर सुरक्षा का घेरा है इसलिए वो आम जनता से नहीं मिलता है, किसी की पहुंच में नहीं है। कभी-कभी वो झोपड़ी में भी घुस जाता है तथा झोपड़ी पूरा जीवन इस आशा में बिता देती है कि वसंत फिर आएगा। जैसे दीये तले अंधेरा होता है वैसे ही वसंत के तले पतझड़ होता है और वो पतझड़ झोपड़े में छूट जाता है।
अब वसंत भी थोड़ी बहुत राजनीति जान गया है, उसने भी रूप बदल लिया है । वसंत बहरूपिया हो गया है । वसंत ऐय्यार हो गया है । वह रिमिक्स बनकर आने लगा है। वसंत जब वसंत में नहीं आ सकता तो वह दूसरे रूपों में आने लगा है । कभी वो राष्ट्रमंडल खेलों का बजट बनकर आता है, कभी हाथी की मूर्तियों के रूप में आता है, कभी हिंदी पखवाड़ा बनकर आता है और कभी...
किसी के जीवन में समस्त जीवन वसंत ही वसंत रहता है और किसी के जीवन में वसंत कभी नहीं आता है, ऐसे में वो चिल्लाता है- वसंत तुम कहां हो?


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8 टिप्‍पणियां:

प्रताप सहगल ने कहा…

vyang bhara vasant ya vasant par vyang. vasant ko bade priprekha mein dekha hai. vasant par kavitayen to bahut dekhi, ekaadh mainen bhi likhi hai par vyang bhara vasant pahli baar padhne ka sukh mila hai. dukh bhara sukh. catharsis.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

सोनिया जी से पूछने पर ही पता चल पायेगा.. जोरदार..

प्रेम जनमेजय ने कहा…

aapne sahi kaha

Jammu Art Scape ने कहा…

Wah, maza aa gaya. Political tippniyan to gazab ki hain. Badhai

Divik Ramesh ने कहा…

अच्छा व्यंग्य हॆ । बधाई ।

mridula pradhan ने कहा…

very good.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सटीक व्यंग्य...बहुत सारे तीर एक साथ चले.

Unknown ने कहा…

वसंत पर ज्ञान चतुर्वेदी का "निबन्ध "पढ़ा था ।आज आप द्वारा उसकी पुलिसकर्मी "खोज"।अखबार में 'लापता 'का विज्ञापन और 100000 का ईनाम कारगर साबित हो सकता है।