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बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

पुनः पुनः फिर जी..


पुनः पुनः फिर जी...

          जैसे -किसी नेता को हारा चुनाव जीतने पर, किसी भ्रष्टाचारी को बेदाग भ्रष्टाचार करने पर, वकील को झूठा मुकदमा जीतने पर, पुलिसवाले को दोनों पार्टियों के  ‘सार्थक’  सहयोग से कत्ल का केस निपटाने पर, विद्यार्थी को बिना पकड़े नकल द्वारा परचा पूरा करने पर,धर्मगुरु को काम और अर्थ का फल प्राप्त करने पर -आलौकिक सुख प्राप्त होता है, वैसा आलौकिक तो नहीं पर उसके सहोदर-सा सुख किसी मध््यवर्गीय ईमानदार जीव को मुफत की तसल्ली बख्श दावत खाने पर मिलता है। रात को सातवें आसमान के सुख में डूबे मन का सुख की ऐसी खुमारी चढ़ती है कि वो सुबह अक्सर दफतर के लिए लेट हो जाता है।
        हमारे राधेलाल भी इसी खुमारी में डूबे हुए थे कि उनकी पत्नी ने, जो कम खुमारी में डूबी थी, दफतर के लिए उठा दिया- सात बजने वाले हैं, दफतर नहीं जाना है क्या?
- अरे यार, बहुत दिनों बाद बढ़िया नींद आ रही थी... कल की पार्टी बहुत जोरदार थी।
- जोरदार क्यों नहीं होगी, बढ़िया शराब की नदियां जो बह रही थीं। मैं देख रही थी कि खूब गोते लग रहे थे तुम्हारे...
             अपने पीने पर आक्रमण होता देख अच्छे-अच्छे पतियों की खुमारी टूट जाती है , राधेलाल की भी खुमारी टूट गई और उसने प्रत्याक्रमण की मुद्रा में कहा- और तुम जो चाट वाले स्टाल पर भुक्खड़ की तरह लगी हुई थी... गोलगप्पे, दही भल्ले, चीला और वो क्या टिकिया... कुछ छोड़ा तुमने...और उसके बाद खाने पर ऐसे टूटे कि...
-हम खा रहे थे, पी नहीं रहे थे...
- नशा चाहे जुबान का हो या गले का, नशा नशा होता है।
    पत्नी ने सुबह की चाय का कप पति को थमाते हुए कहा- उपदेशक जी चाय पीयो,... यारब वो न समझे हैं, न समझेंगे मेरी बात...
        पति ने मुस्कराकर चाय का कप पकड़ते हुए कहा- और तुम्हारे चचा गालिब ने ही कहा है, तौबा तौबा शराब से तौबा... और मैडम जी, सुबह की चाय का भी एक नशा होता है... चाय मिलते ही वैसी ही ताजगी आ जाती है जैसी हाथ में गिलास आते... बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद...कुछ भी कहो कल मल्होत्रा ने दावत बहुत जोरदार दी...क्या नहीं था खाने को और एम्बियेंस...
- पंजाबियों की पार्टी होती जोरदार हैं।
- दिखावा भी जोरदार होता है। उसने दस डिश रखी है तो मैं बीस रखूंगा वाली प्रतियोगिता होती है। एक समय था जब भगवान को छप्पन भोग लगाए जाते थे और भक्त हाथ बांधे प्रभु का भोग लगाते देख प्रसन्न होता था। आजकल प्रभु भक्तों के लिए विवाहोत्सव आदि में छप्पन भोग परोसते हैं और भक्त भोग लगाते हैं और हाथ जोड़कर भोग की तारीफ करते हैं।
- अरे बाप रे...पौने आठ हो गए... आपके चक्कर में मैं लेट हो जाउंगी... आज कामवाली भी अभी नहीं आई है...
- लगता है वो भी  रात को किसी मल्होत्रा की पार्टी में गई होगी... ज़रा अखबार पकड़ा देना।’ कहकर राधेलाल हंसे पर अखबार पकड़ते ही हंसी नैतिक मूल्यों -सी गायब हो गई और वे ऐसे उछल पड़े जैसे  हिंदी पिफल्मों की किसी हिरोईन को पूरे कपड़े पहने देख लिया हो, इस प्रौढ़ावस्था में किसी सुंदरी का प्रेमपत्र सामने आ गया हो या पिफर अपने विरोध्ी का प्रोमोशन-पत्र देख लिया हो। रसोई की ओर प्रगतिशील पत्नी के कदमांे के लिए अवरोध् उत्पन्न करते हुए चिल्लाए-से,‘‘ सुनो, ये लो फिर रसोई गैस, मिट्टी के तेल और पेट्रोल के दाम बढ़ गए और इस बार तो बढ़े भी जेबफाड़ हैं...
             पत्नी के प्रगतिशील कदम जनविरोधी नीतियों की घोषणा सुन लौटे तो नहीं, रुक अवश्य गए। सब्जियों और दालों ने लो पिफर के अंदाज में पहले ही रसोई महंगी की हुई है, और उसपर पतिदेव की यह सूचना- सुनो, ये लो फिर रसोई गैस, मिट्टी के तेल और पेर्टोल के दाम बढ़ गए और इस बार तो बढ़े भी जेबफाड़ हैं...’ । दाम बढ़ाने वालों पर गुस्सा करके वह क्र भी क्या सकती है, बस वोट नहीं देगी और जिसे देगी उसकी क्या गारंटी है कि लो पिफर नहीं होगा।इसलिए उसे गुस्सा आता है पति पर जो गैस का खाली सिलेंडर समय से नहीं भरवाता है, गाड़ी में पेट्रोल की टंकी रिजर्व से भी नीचे ले आता है। इससे ज्यादा नहीं, उंफट के मुंह में जीरा तो आ ही सकता है, बचत की एक मानसिक संतुष्टी तो मिल सकती है।
            ये लो फिर आजकल के भारतीय जीवन में सामान्य घटना-सा हो गया है। कई बार ये लो फिर जागो मोहन प्यारे से आरंभ होता है और रात को आ जा री निंदिया के साथ समाप्त होता है। इस लो फिर में लेना कुछ नहीं होता है और न ही कुछ मिलता है और यदि कुछ मिलता भी हो तो उसके प्रति आपकी अनिच्छा ही होती है।
              अभी तो पति ने अखबार पढ़कर इतना ही ‘ये लो फिर ‘’  बताया है कि रसोई गैस, मिट्टी के तेल और पेर्टोल के दाम बढ़ गए, अभी यह ‘ये लो फिर ’ तो नहीं बताया कि दूध के दाम बढ़ गए हैं, बसों के किराए बढ़ गए हैं, बिजली के दाम बढ़ गए हैं, बच्चे की फीस बढ़ गई,हाउसिंग और कार लोन बढ़ गया है किसी तीन साल की बच्ची का यौन शोषण हुआ है, किसी बलात्कारी ने सत्तर साल की बुढ़िया को नहीं छोड़ा,  किसी कसाब पर मुकदमा चल रहा है आदि आदि ‘ये लो फिर ’ ।
            कहते हैं कि इतिहास अपने को दोहराता और संभवतः ये इसी कहने का परिणाम है कि हमारे जीवन में ‘ये लो फिर ’  बहुत होता है। हर मनुष्य का अपना इतिहास होता है- कुछ का लिखा जाता है, कुछ लिखवाते हैं और बहुतों का अलिखित रहता है। अब इतिहास है तो जीवन में ‘ये लो फिर ’ आएगा ही। आप ध््यान से देखेें तो जैसे आपके चारों ओर भ्रष्टाचार विद्यमान है वैसे ही जीवन को कोई कोना ऐसा नहीं है जहां ‘ये लो फिर ’ विद्यमान न हो।
            हमारी सर्वप्रिय राजनीति मेें लो पिफर महिमा वर्णन - ये लो फिर उसे टिकट मिल गया, लो पिफर दाम बढ़ गए , ये लो फिर विरोधी दल ने भारत बंद किया, ये लो फिर संसद पूरे सत्र नहीं चली, ये लो फिर मंत्राीमंडल में बदलाव हुआ, ये लो फिर नेता असंतुष्ट हुए, लो फिर नेता जी ने आत्मा की आवाज सुनी, लो फिर मंत्री जी पर सी बी आई इंक्वारी बैठी, लो फिर मंत्री जी निर्दोष पाए गए, लो फिर लाठी चार्ज हुआ, लो फिर सरकार ने चुनावी बजट पेश किया, लो फिर चुनाव आ गए, लो फिर मध््यावध् िचुनाव आ गए, लो फिर घोटाला हो गया, लो फिर घोटाले में कोई नहीं फंसा।
         साहित्य में देखें,‘ ये लो फिर महिमा - लो फिर उस साले को पुरस्कार मिल गया, लो फिर उसका एक और संकलन आ गया, लो फिर उसकी किताब कोर्स में लग गई, लो फिर साला अध््यक्ष बन गया, लो फिर उसकी पुस्तक चर्चित हो गई, लो फिर युवा लेखिका/लेखक उससे रात में मार्गदर्शन लेने चला गया, लो फिर प्रकाशक ने रॉयल्टी नहीं दी, लो फिर उसकी किताब बल्क परचेज में आ गई, लो फिर  वो संपादक बन गया, लो पिफर मेरी रचना वापस आ गई और उसकी छप गई।
           अथ न्यायालय  ‘ये लो फिर ’  महिमा - लांे फिर मुकदमा बीस बरस से चल रहा है , लो फिर एक और बदमाश बरी हुआ,लो फिर पैसे की चल गई, लो फिर मंत्री जी को जेल में वी आई पी सुविधा मिली, लो फिर कैदियों ने सुपरीटंेडेंट को मार दिया, लो फिर जेल में मोबाईल मिले,लो फिर काले कोट वालों ने हड़ताल की।
           सरकारी दपफतर में ‘ये लो फिर ’ महिमा - लो फिर बड़े बाबू नहीं आए,  लो फिर उसे आउट आपॅफ टर्न प्रोमोशन मिल गया, लो फिर उसपर सी बी आई इंक्वायरी बैठ गई, लो फिर साहब ने सेक्रेटरी को देर तक काम करने के लिए अकेले रोक लिया, लो फिर साले ने सी आर खराब कर दी।
          परिवार में ये लो फिर महिमा - लो फिर दहेज मांग रहे हैं, लो फिर लड़की पैदा हो गई, लो फिर बहू खाली हाथ आई, लो फिर कोई जला, लो फिर बहू ने मुकदमा कर दिया, लो फिर उनकी लड़की भाग गई, लो फिर मोहल्ले की नाक कट गई, लो फिर अपनी नाक कट गई।
         अभी तो मैंने ये लो फिर का वर्णन -समुद्र में बूंद जितना, थाने में ईमानदारी जितना, नेता में सभ्य आचारण जितना, अमेरिकी प्रशासन में विनम्रता जितना, पाकिस्तान सरकार के सत्य वचन जितना, आतंकवादी की आंख में आंसू जितना, हिंदी फिल्मो की हिरोईन के शरीर में कपड़े जितना ही किया है। इसका और वर्णन करने के लिए मुझे समुद्र को स्याही, धरती को कागज यानि उतना ही करना पड़ेगा जितना भारत में भ्रष्टाचार के वर्णन के लिए करना पड़ता है।
        देश का और आपका इस  ये लो फिर ‘’ के चक्कर में क्या होता है, आपके जीवन में लो फिर कितना लो अथवा हाई है, या आज क्या-क्या लो फिर हुआ, जानता नहीं पर इतना जानता हूं कि इस लो फिर के कारण राधेलाल के घर में सुनामी आ गई। क्या-क्या लो फिर हुआ? पढ़िए- लो फिर बाई नहीं आई, लो फिर कार की बैटरी डाउन हो गई, लो फिर मां बाउ जी दो महीने के लिए आ रहे हें, लो फिर दिल्ली बंद हो गया, लो फिर छोटी को बुखार आ गया, लो फिर सोसायटी ने मेनटेनेंस बड़ा दिया, लो फिर गीजर खराब हो गया, लो फिर पानी नहीं आ रहा है, लो फिर बिजली चली गई आदि आदि अनादि।
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