इस एटमी डील के चक्कर में कुछ डील हुई हैं, कुछ हो चुकी हैं और कुछ होंगी । भारतीय प्रजातंत्रा का दूसरा नाम हो ही गया है ले-दे का खेल। डील करे जाओं और सरकार चलाए जाओ । अब एटमी डील के चक्कर में --कुछ बिल्लियों को आशा थी सरकार गिरेगी और उनके भागों छींका पफूटेगा, कुछ सरकार से समर्थन लेने की नौटंकी करते रहे, कुछ अब सरकार गिराएंगे और कुछ अब गिरतों को संभालेंगें । ये सब होगा एक डील के तहत । अजब पफंडा है इस डील का, मुझे तो समझ नहीं आ रहा है । राजनीतिक डील मुझ जैसे अराजनीतिक को समझ भी कैसे आ सकती है, मैं तो ताश में होने वाली डील को जानता हूं जिसमें जो डील करता है वो पत्ते बांटने में बेईमानी भी कर लेता है ।
जब से भारतीय राजनीति जनसेवा के तुच्छ विचारों का त्याग कर स्व सेवा के महान विचारों से ओत प्रोत हुई है, मेरे मित्रा राध्ेलाल की राजनीतिक समझ बढ़ गई है । जिस प्रकार, जब-जब भाजपा को चुनाव-हानि की आशंका है तो विश्वेश्वर प्रभु ;केवल भारतवर्ष में द्धजन्म लेते हैं, जब-जब कांग्रेस संकट में होती है तो नेहरू गांध्ी परिवार अवतरित होता है, जब-जब चुनाव होते हैं तो तीसरा मोर्चा बनता है वैसे ही जब-जब भारतीय प्रजातंत्रा की मेरी समझ कम होती है राध्ेलाल जी अवतरित होते हैं ।
इन दिनों तो क्या पिछले कई महीनों से मैं एटमी करार के पफंडे को समझ नहीं पा रहा हूं । कई बार लगता है जैसे तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूं जैसा कोई सीरियल चल रहा है जो कभी भी सास- बहू एपीसोड में परिवर्तित हो सकता है ।
मैंनें राध्ेलाल से पूछा- प्यारे यह मामला इतना क्यों खिंच गया ?
-- खिंचा नहीं खींचा गया प्यारे!’
-- पर क्यों ?
- जिससे सत्ता का अध्कि से अध्कि सुख पाया जा सके । जैसे आजकल लगभग हर विकसित विकासशील देश के पास बम है पर उसे पफोड़ने का समय बम वाले को ही तय करना है वैसे ही एटमी करार वाले को तय करना है कि इस करार का बम कब पफोड़ना है ।
-- क्या कांग्रेस को उम्मीद थी कि लेपफट करार के लिए मान जाएगा ?
-- शायद कुछ लोगों को लग रहा था कि करार और करात में वर्णाें के थोड़े हेर-पफेर हैं इसलिए शायद महासचिव करात करार के लिए मान जाएं , पर...
-- पर क्या ?
-- अब अंतरराष्ट्रीय मसले तय करने के लिए उनके आका भी तो हैं । आकाओं के सामने तो सभी को घुटने टेकने पड़ते हैं, और पिफर चुनाव का सावन आने को है ऐसे में किसी दूजे संग क्या पींग बढ़ानी ?
-- एटमी करार से पफायदा होगा या नुकसान ?
-- प्रजातंत्रा में पफायदा और नुकसान तो राजनीतिक दलों का सोचा जाता है, जनता को तो साला...समझा जाता है। अब अगर कांग्रेस चुनाव में जीत गई तो उसका पफायदा और अगर हार गई तो उसका नुकसान और प्रतीक्षरत् प्रधनमंत्राी का पफायदा ।
- ये तो कांग्रेस का पफायदा नुकसान हुआ, मैं तो देश के पफायदे नुकसान के बारे में पूछ रहा था !
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- इस समय कांगे्रस ही देश है, जैसे एक समय में इंदिरा इज इंडिया हुआ करता था।
- आपका मतलब तब इंदिरा जी प्रधनमंत्राी थी और आजकल मनमोहन सिंह प्रधनमंत्राी हैं तो आजकल मनमोहन सिंह इंडिया हैं ।’ मैंनें अपने राजनीतिक ज्ञान का सिक्का जमाते हुए कहा ।
ये सुनकर राध्ेलाल जोर से हंसा और बोला- पांचवी क्लास की क्या कहूं आप तो राजनीति की पहली क्लास के भी लायक नहीं हैं । आप तो... भोंपू की कभी अपनी आवाज होती है ?
-- अच्छा राध्ेलाल जी,यह बताईए इध्र परमाणु करार हो जाता है और उध्र प्रधनमंत्राी-प्रतीक्षा- सूची वालों को यदि प्रधनमंत्राी की सीट मिल जाती है तो क्या वो सत्ता में आने पर करार को रद्द कर देंगें ?
-- अरे प्यारे, जिस अह्म मुद्दे, अयोध््या में मंदिर बनवाने की मांग लेकर वो लोग सत्ता में आए थे, सत्ता में आते ही उसे भूल गए ये तो ...
-- और वो जो अब तक सरकार में थे और सरकार से समर्थन वापस ले रहे हैं, जब चुनाव के बाद सांप्रदायिक ताकतों को हराने के लिए, दोबारा सरकार बनाने में उनका ‘बाहर’ से समर्थन चाहिए होगा तो क्या वो देंगें?
इस बार राध्ेलाल पिफर वैसे ही जोर से हंसा जैसे अक्सर वो मेरी मूर्खता पर हंसता है और बोला-- राजनीति में हरेक के दिन बदलते हैं और हरेक बदलता है और बिना बदले दिन नहीं बदलते हैं ।
अब इन बेचारों को देखो, इतने दिनों से सत्ता से दूर है न राज्य में और न केंद्र में ही कोई पूछ रहा है । ऐसे में बहुत कष्ट होता है जब आपके विरोध्ी सत्ता में हो और आप सत्त से कोसो दूर । राजनीति ऐसी चीज है जिसमें बिल्ली के हाथ में कभी भी छींका पफूट सकता है और यही कारण है कि अनेक बिल्लियां उस छींके का इतजार करती रहती हैं ।
इस एटमी करार ने उन्हें भी दस जनपथ से निमंत्रिात करवा दिया , प्रधनमंत्राी कार्यालय के दर्शन करवा दिए । उनके सहयोगी ने उन्हें प्रधनमंत्राी - कार्यालय ध्यान से दिखाते हुए कहा - देख लीजिए, हो सकता है अगली बार इस कार्यालय में आप बैठे हों ।
वो कैसे ?
--अब देखिए ये तो भारतीय राजनीति में पक्का हो गया है कि कोई पार्टी अकेले बहुमत नहीं पा सकेगी । एटमी करार तो होगा ही । अब कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी तो सरकार बनाने के लिए लेपफ्ट तो उसको समर्थन देगा नहीं । हमारी आपकी बात और है , सभी तो बार-बार थूक कर नहीं चाट सकते हैं न ! अब उफपर वाले की मेहरबानी से...
-- देखिए उफपर वाले की नहीं अल्लाह की मेहरबानी कहें
- वो ही कह देते हैं... सत्ता में बिना किसी की मेहरबानी के कहां आया जा सकता है ... तो मेहरबानी से पिछली बार वाली लोकसभा जैसा इस बार भी हाल हो गया तो आप प्रधनमंत्राी बने ही बने ।
हे एटमी डील तूं ध्न्य है कि तूने कितनी बिल्लियों के लिए छींके तैयार कर दिए हैं कि तूने अपने करार से कितनों का करार छीना है और कितनों को करार दिया है ।
शनिवार, 13 सितंबर 2008
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11 टिप्पणियां:
बढ़िया व्यंग्य. आप तो वैसे भी व्यंग्यकारों के उस्ताद हैं. व्यंग्य यात्रा के चुनिंदा, अच्छे व्यंग्य भी यहाँ प्रकाशित करें तो वाकई मजा आए.
आदरणीय जनमेजय जी,
आपको ब्लॉग पर पढ़ते हुए बहुत खुशी हो रही है. उम्मीद है सार्थक व्यंग्य लगातार पढ़ने को मिलेंगे.
सादर
आत्माराम
करार पर आपकी करारी दृष्टि बहुत उम्दा है।
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है। आपके व्यंग्यों से यह और समृद्ध होगा इसमें कोई संदेह नहीं। आशा है, अन्य वरिष्ठ साहित्यकार भी आपसे प्रेरित होकर इस दिशा में सोचेंगे। सभी व्यंग्य सामयिक और दिलचस्प हैं। बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं।
प्रेम भाई,
समसामयिक, धारदार और सटीक व्यंग्य पढकर बहुत ही अच्छा लगा। वैसे मेरा मानना है कि आपकी व्यंग्य रचनाओं के बारे में बिशेष कहना कहीं खुद ही व्यंग्य का शिकार न हो जाए।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
सत्य को उजागर करता बहुत सार्थक व्यंग आलेख बधाई आपका चिठ्ठा जगत में स्वागत है निरंतरता की चाहत है
बधाई स्वीकारें मेरे ब्लॉग पर भी पधारें
अच्छा लिखा है आपने. चिटठा जगत मैं आपका स्वागत है.
Vyangya padhe ke achha laga.
one thing u have missed here, I was hoping that u will be covering that, the most benifit will be going to be to the politician, they have ordered 10 reacters from US in which they will make commision and whatever the goverment will come they will do the same, we have in India world class instrument and on the name of fuel these will destroy those and our people will be testing the Imported instruments in which these Politicians have got commisions, it is the basic Politics, Jeeto yaa na Jeeto paise to bana lo
धारदार और सटीक व्यंग्य.
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