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गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

व्यंग्य -अपनी शरण दिलाओ, भ्रष्टाचार जी !


अपनी शरण दिलाओ, भ्रष्टाचार जी !
पत्नी ने मुझसे कहा- सुनो अब और नहीं सहा जाता। या तो आप मुझे तलाक दे दो या फिर अपने को सुधार लो।’
सफेद-बाल प्राप्त अवस्था पति से कोई पत्नी ऐसा कहती है तो लगता है कि पति ने चाहे सफेद बालों को काला नहीं किया पर उसके श्याम मुख पर कालिख लगने वाली है। उसकी प्रतिष्ठा का सिंहासन डोलने लगता है। नारी-विमर्श, यौन-उत्पीड़न आदि के चारों ओर नारे लग रहे हों और कानून आंखों पर पट्टी बांध न्याय कर रहा हो तो पति के सामने स्वयं को सुधारने का ही विकल्प बचता है।
मैंनें भी इसी विकल्प को स्वीकार करते हुए कहा- हे देवी मैं स्वयं को ही सुधारूंगा , पर ये तो कहें कि आपने काली का उग्र रूप धारण कर मेरे मुख पर तलाक रूपी कालिमा लगाने का क्यों सोचा है ? मैंनें तो कुछ भी ऐसा करना छोड़ दिया है जो आप से सहा नहीं जाता। मैं तो निरीह, नपुंसक जीव-सा अपना समय काट रहा हूं...
- यही तो सहा नहीं जाता है। मोहल्ले के अन्य पुरुष जब निरंतर अपने पराक्रम से अपनी पत्नियों को प्रसन्न रख रहे हों, उनपर नित्य प्रति काले धन की वर्षा कर उसका मोहल्ले में सम्मान बढ़ा रहें हों, उसकी क्रय-शक्ति की जी डी पी में वृद्धि कर रहे हों तो आप ही कहें आप जैसे निरीह भ्रष्टाचारविहीन मास्टर के संग रहते -रहते कभी तो विद्रोह का स्वर उभरेगा। यह जीवन तो अकारथ गया , अगला जीवन तो सुधर जाए । इसके लिए मैं किसी सुयोग्य का दामन थाम कुछ भ्रष्टाचार का सुकर्म कर अपने अगले जन्म के लिए कुछ संचित करना चाहती हूं। ऐसे में या तो आप कुछ कर लें पतिदेव अन्यथा...
- मुझे तीन माह का समय दें देवी, मैं योग्य पति बनकर दिखता हूं।’

मुझ निष्काम को मेरी पत्नी कामी बनने को प्रेरित का भ्रष्टाचार की राह पर स्वयं धकेल रह थी। मुझे धिक्कार है कि मैं जीवनभर, चार क्या एक भी फल देने वाला भ्रष्टाचार न कर सका । मैंनें कॉलेज में मास्टर की नौकरी करते हुए फ्रेंच लीव मारने जैसा जो तनिक-सा भ्रष्टाचार किया है उसने पत्नी की श्रीवृद्धि में कोई वृद्धि नहीं की है। हिंदी जैसे विषय में कोई ट्यूशन नहीं रखता और न ही कोई कोचिंग सेंटर वाला घास डालता है अतः मैंने अपने काम से ही काम रखा है। मास्टर की नौकरी किसी गरीब के झोपड़े-सा ऐसा स्थल है जहां भ्रष्टाचार का वसंत कभी भी झांकता तक नहीं है।
पर मित्रों चुनौती एक बड़ी चीज होती है। और पुरुष के पौरुष को जब चुनैती मिलती है तो पत्थर में कमल खिल जाते हैं । ये दीगर बात है कि कमल दूसरे को मिलते हैं और पत्थर दीवाने के हिस्से में आते हैं। पर यहां तो चुनौती कम धमकी अधिक थी और जस की तस धरी हुई चदरिया में तलाक का दाग लगने का खतरा था।
मैंने भ्रष्टाचार की राह पर चलने की ठान ली। अगले दिन मैंने अपने एक विद्यार्थी को ब्लैकमेल करने इराद से कहा- देखो तुम्हारी एटेंडेंस कम हैं, इस बार परीक्षा में नहीं बैठ पाओगे, मुझसे अकेले में मिलना।’
- अरे सर जी मैं ं आपको तकलीफ न दूंगा, यूनियन का प्रेजीडेंट सब करवा देगा उसी से मिल लूंगा।
मैंने दूसरे को पकड़ा और कुछ बेशर्मी से कहा - तुम कुछ पढ़ लिख नहीं रहे हो। इस बार फेल हो जाओगे। पास होना चाहते हो तो मुझसे अकेले में मिल लो।’
स्टुडेंट जी अधिक बेशर्मी से बोले- सर जी आप तो केवल हिंदी में पास करवाओंगे, इक्जामिनेशन वाले शर्मा जी तो सबमे पास करवा देंगे। मैं उनसे ही मिल लूंगा।’
मित्रों जैसे-जैसे तीन माह की अवधि समाप्त हो रही है देश में बढ़ते भ्रष्टाचार के सं-संग मेरी आंखों का अंधेरा भी बढ़ रहा है।
अब मेरे सामने एक ही विकल्प बचा है कि भ्रष्टाचार का विरोध करने वालों के दल में शामिल हो जाउं, नारे लगाउं और हो सकता हे वहां मुझे भ्रष्ट करने वाले कोई सकटमोचक भ्रष्टाचार शिरोमणी मिल जाए जो अपनी शरण में ल ेले और बुढ़ापे में मुझे तलाक से बचा लें।

5 टिप्‍पणियां:

शाकिर खान ने कहा…

नेता जी की जय

daanish ने कहा…

चारों ओर फैले
भ्रष्टाचार से तो यही लगता है
कि पत्नी को तलाक़ ले लेने का मौक़ा
न दिया जाए ....
भगवान् करे
ईमान को तलाक़ दे देना
पत्नी जी को गवारा न हो !

अच्छा सधा हुआ व्यंग लेख है .

Prakash Manu प्रकाश मनु ने कहा…

भाई प्रेम जी, आपकी भीषण बिथा-कथा से परिचित हुआ। पर भाई, कोई जरूरी तो नहीं कि पत्नियाँ इस भ्रष्टाचार-कूप में नीचे ही खींचें। बलिक इस कूप में गहरे डूबे हुए को रस्सी पकड़ा के बाहर खींच भी सकती हैं। मेरा खयाल है, किसी को इसी विषय पर स्त्री के एंगिल से भी लिखना चाहिए।...पर डर है, तब कहीं मर्दों की मुसीबत न आ जाए। उऩके लिए व्यंग्य के विषय कम हो जाएँगे।
अलबत्ता, मैंने व्यंग्य का पूरा मजा लिया। सस्नेह, प्र.म.

प्रेम जनमेजय ने कहा…

प्रकाश मनु जी
व्यंग्य का आनंद लेने के लिए धन्यवाद
आपने लिखा है -पर भाई, कोई जरूरी तो नहीं कि पत्नियाँ इस भ्रष्टाचार-कूप में नीचे ही खींचें। बलिक इस कूप में गहरे डूबे हुए को रस्सी पकड़ा के बाहर खींच भी सकती हैं।' सम्मानीय भाई , यहाँ पत्नी भ्रष्टाचार-कूप में नहीं खींच रही है अपितु वह तो भ्रष्ट व्यवस्था कि टूल बनी हुई है , व्यवस्था आज के मध्यमवर्गी ईमानदार को विवश कर रही है कि वह इस कुएं में कूदे
बहुत दिनों से आपने व्यंग्य यात्रा के लिए कुछ दिया नहीं , अनुरोध है

Prakash Manu प्रकाश मनु ने कहा…

भाई प्रेम जी,
कभी थोड़ी फुर्सत निकाल सकें, तो मेरे ब्लाग पर भी एक नजर डालें। थोड़ा इस माध्यम का कच्चा और नौसिखिया खिलाड़ी हूँ, तो जोई-सोई कुछ न कुछ करता रहता हूँ। सपना यही कि एक सार्थक संवाद का पुल बने। लिंक दे रहा हूँ--
http://prakashmanu-varta.blogspot.com/
व्यंग्य-यात्रा के लिए कुछ भेजने का मन बन रहा है। अगर मेलआईडी पता चले, तो मेल से भेज दूँगा। मेरी मेल आईडी है--
prakashmanu01@gmail.com
शुभकामनाओं सहित, प्र.म.