पिछले माह पेज देखे जाने की संख्या

सोमवार, 9 मार्च 2009

व्यंग्य--मेरे स्लमडाॅग जीजाजी

मेरे स्लमडाॅग जीजाजी
0प्रेम जनमेजय
पहले मैं अपने जीजाजी को जोरू का गुलाम कहती थी क्योंकि उन दिनों जोरू का गुलाम फिल्म हिट हुई थी और मेरे जीजाजी में उस हिट फिल्म के सभी गुण थे। अब स्लमडाॅग हिट हुई है और मुझे लगता है कि इस नाम के जितने हकदार मेरे जीजाजी हैं उतना इस स्लम में रहने वाले, कुत्तामाफक जिंदगी जीने वाले ‘इंसान’ नहीं हैं। स्लम मे रहने वालों की तो मजबूरी है कि वे बदबूदार जिंदगी जीएं क्योंकि वे पैदा ही बदबू में हुए हैं । जैसे हमारे प्रजातंत्र की व्याख्या है- जनता का, जनता के लिए और जनता के द्वारा वैसे ही मेरे देश के अमीरजन, प्रजातंत्र के इन गंदी नाली के कुत्तों की व्याख्या इस तरह करते है- गंदी नाली के, गंदी नाली के लिए और गंदी नाली के द्वारा।
मेरे जीजाजी में स्लमडाॅग के सभी गुण विद्यमान् हैं। कुछ स्लमडाॅग होकर करोड़पति होते हैं और कुछ करोड़पति पत्नी के सहर्ष स्लमडाॅग होने के लिए विवाह का गेम खेलते हैं और ‘जय हो, जय हो’ के गीत गाते हैं। पत्नी क्या, ऐसे सम्माननीय जीव किसी भी पैसे वाले के लिए सहर्ष स्लमडाॅग बन जाने को जीभ लपलपाते पाए जाते हैं।
वैसे अगर सिर्फ स्लमडाॅग शब्द होता तो मैं अपने जीजाजी को कभी स्लमडाॅग नहीं कहती, पर इस शब्द के साथ जो मिलेनियर यानी करोड़पति शब्द लगा हुआ है उससे स्लम शब्द भी अत्यधिक मूल्यवान हो गया है। कुछ भी कहिए जनाब अंग्रेजी भाषा में जो इज्जत है वो हिंदी में कहां? अंग्रेजी में कोई गाली भी दे तो ऐसी लगती है जैसे होली पर ‘गोरी’ की गाली। लगता है जैसे गोरे -गोरे हाथों से किसी ने बदबूदार गालों पर गुलाल मल दिया हो। गाली तो ‘गोरी’ ही की आनंद देती है, काली गाली ने कभी किसी को आनंद दिया है? आपने कभी सुना कि श्याम ने गोरी राधा को गाली दी हो? गाली तो श्याम को गोरी ही देती है। हम श्यामवर्णी भी तो बरसों बरस गोरी की गालियां खाते रहे है। अब आप किसी को केवल गंदी नाली का कुत्ता, कीड़ा आदि आदि कहकर देखिए, कैसे काटने को दौड़ेगा पर उसी कुत्ते को हड्डी दे दीजिए वो आप को कुछ नही कहेगा, मजे से हड्डी के बहाने अपना खून चूसेगा और आपको आदरणीय दृष्टि से देखेगा। आप उसका कितना अपमान कर लें, उसका मजाक उड़ा लें पर वो इसे भी अपना सम्मान समझेगा और आपके मजाक का आनंद लेते हुए हंस देगा। अब इस देश के वासियों को भी तो आॅस्कर की हड्डी मिल गई है और वो खुश हैं। ऐसे ही मेरे जीजाजी को भी मेरी दीदी के नाम का दो करोड़ का मकान मिल गया तो उन्हें किसी भी नाम से पुकार लो वो बस हंस देते हैं। वे संतोषी जीव हो गए हैं और उनका सारा जीवन दर्शन एक हड्डी में सिमट गया है। हड्डी केवल कुत्तों की नहीं इंसानों की भी सहनशीलता बड़ाती है।
मेरे जीजाजी सच्चे स्लमडाॅग हैं, कोई फिल्मी डाॅग नहीं हैं। स्लमडाॅग करोड़पति फिल्म का डाॅग तो कटखना है पर मेरे जीजाजी गाय के माफिक गउ- डाॅग हैं। स्लमडाॅगीय हीरो आत्मस्वाभीमान के लिए तो खून भी करता है पर मेरे जीजाजी खून देखकर बेहोश हो जाते हैं। उनके मुंह से केवल कउं कउं की आवाज ही सुनी है, कभी भौं भौं की नहीं सुनी है। उस दिन अपने नेताजी भी यही कह रहे थे कि राजनीति में आजकल तो ऐसी वफादार ब्रीड देखने तक को नहीं मिलती है। वो भी क्या दिन थे कि एक आध हड्डी डाल दो तो पूंछ हिलाते वफादार कोने में पड़े रहते थे पर अब तो ऐसे कटखने हो गए हैं कि भेडि़यों की तरह फाड़ डालने की फिराक में रहते हैं। ऐसे प्यारे-प्यारे जीजाजी के साथ किस साली को होली खेलने में आनंद नहीं आएगा। मेरे जीजाजी तो होली खेलते समय भी इस बात का पूरा ध््यान रखते हैं कि निगाह चोली पर नहीं चप्पल पर रहे। बड़ी इज्जत वाली होली खेलते हैं मेरे जीजाजी। वो और सालियां होंगी जिनके जीजा होली के बहाने उनसे मजे ले लेते हैं, मैं तो वो सालीजी हूं जो अपनी शर्तोंं पर होली के मजे लेती है। आजकल मेरे जैसे मजे विश्व के धनी देश स्लमडाॅग देखकर ले रहे हैं और ये सोचकर प्रसन्न हो रहे हैं कि उनके देश में कितनी ही मंदी क्यों न हो और भारत ने चाहे कितनी ही तरक्की की हो पर स्लमडाॅग तो भारत की ही शोभा बढ़ा रहे हैं। उनके देश में स्लम तो है पर उसमें कुत्ते नहीं पलते हैं, क्योंकि वो पलने ही नहीं देते । अपना स्लम ये अमीर देश गरीब देशों को दान - दक्षिणा के रूप में देते रहते हैं । वैसे आपने देखा ही होगा कि पिछले कुछ वर्षों में हमने कितनी तरक्की कर ली है, हमारी जी डी पी कितनी बड़ गई है- हमारी तो गरीबी भी करोड़ों के भाव बिकती है और हमें अंतराष्ट्रीय ईनाम दिलाती है।
इस बार हमारे परिवार की महिलाओं ने सोचा कि इस होली पर पुरुषों की स्लमडाॅगीय ‘होली’ प्रतियोगिता हो जाए। आप को बताने की आवश्यक्ता नहीं है कि हमारे परिवार में सोचने का काम पत्नी करती है, और अधिकांश पति फल की चिंता में कर्म करते हैं। वैसे, इस बार होली से पहले अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है अतः होली पर वो ही होना चाहिए जो महिलाएं चाहें।
पुरुषों की स्लमडाॅगीय प्रतियोगिता एकदम लीक से हटकर और मनोरंजक होने वाली है। इसके लिए बाकायदा जानकार लोगों की सलाह ली जा रही है। भांति-भांति के बदबूदार कीचड़ एकत्र किए जा रहे हैं । कीचड़ क्यों ? मित्रों, प्रतियोगिता के लिए। और प्रतियोगिता यह होगी कि जो भी पुरुष भांति- भांति के बदबूदार कीचड़ों को सफलतापूर्वक पार कर के जितना लथपथ और बदबूदार आएगा वो ही विजयी होगा। हमारी तैयारियों के दौरान एक समस्या आई कि इन कीचड़ों में बदबू पैदा करने के लिए बदबूदार इत्र कहां से लाया जाए? हमने पूरी मार्केट छान ली पर बाजारवाद के इस युग में हमें ऐसा इत्र नहीं मिला जो मल-मूत्र आदि की गंध दे। हमने सूअरों की काॅलोनी में चुनाव की तैयारी में मस्त कुछ संतों से भी पता किया पर पता यह चला कि वो गंदगी के प्राकृतिक रूप में विश्वास करते हैं। अब हमने बदबूदार इत्र के निर्माण की व्यवस्था कर ली है और हमें विश्वास है कि स्लमडाॅग फिल्म की सफलता के कारण इनका भी बाजार बनेगा। इस समय हमारा शोध चल रहा है कि बाजार को किस तरह की बदबूदार सुगंधित इत्र की आवश्यक्ता होगी। आप भी कभी अपने घर की खुशबू से उक्ता जाएं और आपको स्लम जैसी ‘सुगंध’ की तड़प पैदा हो या पिफर ईलीट क्लास की देखा देखी आपमें भी गंदी नाली के कीड़ों के प्रति प्रेम भाव पैदा हो तो आप हमसे सीधे ‘सूअर ब्रांड’ इत्र मंगा सकते हैं। ये इत्र आपको मल-मूत्र की प्राकृतिक सुगंध देगा। इस इत्र को लगाने से आप स्लम में रहने के आदी हो जाएंगें और सूअर की तरह संतई स्वभाव को प्राप्त करेंगें।
इस प्रतियोगिता में कौन विजयी हुआ इसकी रिपोर्ट तो मैं आपको अगली होली पर ही दे सकती हूं। अगली होली तक तो ये भी पता चल जाएगा कि भारतीय राजनीति के चुनावी -स्लम से निकलकर कौन-कौन ... आपकी सेवा में प्रस्तुत होते हैं। आम चुनाव में कोई भी जीते पर मुझे पूरा विश्वास है कि इस होली की आगामी प्रतियोगिता में मेरे जीजाजी ही जीतेंगें। आप भी मेरे साथ गाएं - जय हो, जय हो।

000000000000
‘नई दुनिया’ के 8 मार्च,2009 अंक में प्रकाशित

3 टिप्‍पणियां:

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

अगर संडे का नई दुनिया होली रविवारीय पत्रिका लाकरपढ़ें तो आपको कोई एतराज तो नहीं होगा। प्रेम भाई।

आप मेरे व्‍यंग्‍य को यहां पढ़ सकते हैं पर हो सकता है आप भी जनसत्‍ता लेकर बैठे हों। खैर ...
जो भी हो । होली है ........ http://avinashvachaspati.blogspot.com/2009/03/blog-post_09.html

सरंगादर।
अविनाश वाचस्‍पति

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

sundar, bahut badhiya.

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

पढ़ लिया बहुत आनंद आया

थोड़ा और आता अगर


"ऐसे ही मेरे जीजाजी को भी मेरी दीदी के नाम का दो करोड़ का मकान मिल गया तो उन्हें किसी भी नाम से पुकार लो वो बस हंस देते हैं। वे संतोषी जीव हो गए"

पुकार को पुचकार कर देते और
अंत में जय हो, जय हो
को बदलकर

जय भौं, जय भौं करते।

वैसे यह मेरा अपना ख्‍याल है

आनंद वैसे कम नहीं आया और

कादम्बिनी में मार्च 2009 में प्रकाशित

सिद्ध पुरुषस्‍य कथा इति के जरिए
कीचड़रस और गोबररस का महत्‍व

समझ में आया।