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सोमवार, 8 जून 2009

तपन

जब जून का महीना आता है
अपने प्राकतिक रूप में
अपने पूर्ण अस्तित्व के साथ
सपरिपवार,
दिल्ली में लोग तपते
या जहां कहीं भी दिल्ली है
लोग तपते हैं
भीष्ण गर्मी की तपन से ।
लोग तपते हैं
मैं भी तपता हूं
पर, एक और अगन से।
ये अगन है अभाव की
ये अगन है खालीपन की
ये अगन है अपना बहुत कुछ बहुमूल्य खोने की।
मैंनें अपनी माॅ को
इसी मौसम में खोया है।
शायद इसलिए
आठ जून को जब आठ बजते हैं
मौसम कैसा भी हो
सुहावना या तपता हुआ
एक आग से मुझे भिगो जाता है
मेरे अंदर तपता अभाव जगा जाता है।

पर ना जाने क्यों
ये सब मुझे बेचैन तो करता हैं
पर असंतुलित नहीं।